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***भ्रष्ट तंत्र में बेखौफ अपराधी ***
संतोष पांडेय स्वदेशी चेतना मंच
इन्साफ जालिमों की हिमायत में जायेगा…
ये हाल है तो कौन अदालत में जाएगा..
दस्तार नोंच नाच के एहबाब ले उड़े…
सर बच गया है ये भी शराफत में जायेगा…
दोजख के इंतजाम में उलझा है रात दिन..
दावा ये कर रहा है की जन्नत में जाएगा…
वाकिफ है खूब झूठ के फन से ये आदमी…
ये शख्श एक रोज जरूर शियासत में जायेगा ….
जनाब राहत इंदौरी का ये शेर देश की सामाजिक पहलू का बड़ा ही माकूल चित्रण करता है । क्या शहर ,क्या गाँव ,अपराध का साम्राज्य सर्वव्यापी हो गया है ।अब तो ऐसा लगने लगा है कि ईश्वर सर्वत्र होंगे ये बहस का विषय हो सकता है ,पर अपराध सर्वत्र है ,ये निर्विवाद है ।छोटी -छोटी बातों में लड़ाई – झगड़े जहां हमारे सहअस्तित्व को नकारता है वही पुलिस थानों एवं न्यायालयों में बढ़ती भीड़ इस बात की तस्दीक करती है “सब कुछ ठीक नही है “। कितनी सत्य बात है कि जब नैया खेने वाला माझी ही नाव डूबने पर आमादा हो जाय तो नैया को केवल ईश्वर ही पार लगा सकता है। आज हमारा रक्षा तंत्र जिसके ऊपर सामाजिक ताने बाने को बचाने की जिम्मेवारी है वही आकंठ तक भ्रष्टाचार में डूबा हौ तो अपराधियो की क्या गलती है ,उनका तो पेशा ही वही है । हालिया कानपुर की घटना को ही ले लीजिए ,एक अपराधी अब इतना ताकतवर हो गया कि वो पुलिस के आला अधिकारी सहित 8 लोगो की हत्या कर देता है और पांच थानों की पुलिस उसका कुछ बिगाड़ नही पाती । अपराधी इतने बेखौफ इसलिए होते जा रहे है क्यो की इनको पता है कानून इनको घेर नही सकता । अपराधी ,उनके वकील और भ्रष्ट तंत्र के गठजोड़ ने कानून को अपाहिज बना दिया । सच्चे पीड़ित हुए ,बुरो का जयघोष हुआ । कितनी अजीब बात है कि जिस बिकास दुबे के ऊपर 60 मुकदमे चल रहे थे उसको हर बार आसानी से जमानत मिल गयी । लोगो को जब पुलिस से कोई राहत नही मिलती तो वो न्यायपालिका में इस उम्मीद से जाता है कि न्याय के मंदिर में भगवान के रूप में न्यायाधीश उनका न्याय करेगा ,लेकिन जब न्याय बिकने लगे तो किसका सहारा ? नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े ये बता रहे है की देश में हर तीन मिनेट में बलात्कार और 19 मिनट में अपहरण की घटना होती है । और सबसे चौकाने वाला सच तो यह है कि 1953 से 2006 के बीच चोरी की घटना में अस्सी फीसदी कमी आयी है और दिन दहाड़े हो रही लूट की घटनाओं में उत्तरोत्तर बृद्धि हुई है। ये बताइये यदि पुलिस स्वतंत्रता के बाद निरंतर विकसित हुई तो ये कौन सा विकास है जिसमे अपराधियो के हौसलो में बृद्धि हुई ।दबे-पांव की जाने वाली घटनाओ में यदि तेजी आती तो ये समझ मे आनेवाली बात होती पर यहां पर तो उसका बिल्कुल उलट हुआ , वो घटनाएं बढ़ी जो दिन के उजाले में बेखौफ होकर की गयी। आज लूट, अपहरण , छिनैती की घटनाये निरंतर बढ़ रही है क्योंकि हमारे सिस्टम में छेद हो चुका है । हमारे रक्षक ही विभीषण बनके जब बदमाशों का साथ देंने लगेे तो भला कौन इस चमन की हिफाजत करेगा। आज आदालतों में मुकदमो का अंबार लगा है । किसी भी पीड़ित को न्याय मिलने में वर्षो बीत जाते है ।हद तो तब हो जाती है कभी अत्याचारी के मृत्यु के बाद अदालत उसे सजा देती है । एक बड़ा ही सुंदर वाक्य है – न्याय में देरी ,न्याय न मिलने के बराबर होता है । जब जख्म सूख कर मृत हो जाये तब जख्म देने वाले को यदि फांसी भी दे दी जाय तो भीउसके मायने नही होते । सरदार पटेल जी ने देश की एकता और अखंडता के लिए एक राष्ट्र एक पोलिस तंत्र की परिकल्पना की थी जिसमे राज्य की अपनी रक्षा तंत्र (पुलिस) भले ही हो पर केंद्र में एक मजबूत और सुव्यवस्थित पुलिसिया प्रणाली विद्यमान हो जो भविष्य की चुनौतियों का बेहतर प्रबंधन एवं समाधान कर सके । पर सरदार पटेल और उनका संगठन जिन्होंने एक जटिल संविधान का निर्माण कर डाला उनको ये नही पता था या दूसरे शब्दों में कहे तो संबिधान निर्माताओं को तनिक भी आशा नही थी कि उनके लोग इतने आत्मबिहीन एवम कृतघ्न हो जायेगे की अपने ही जनता को ही एक दिन लूटने लगेंगे। आज पोलीसे थाने दलालो के अड्डे बन गए है जिस नेक नियति से इनका निर्माण हुआ ,इसके लोग कार्य इसके बिल्कुल विपरीत कर रहे है । आज पोलिस कार्य नही, कारनामो के लिए जानी जाती है । थाना की महिमा ऐसी की पीड़ित ,आक्रांता बन जाता है और आक्रांता ,को पीड़ित के रूप में पेश कर दिया जाता है । पुलिस जिसको मित्र पुलिस के रूप सहयोगी बनना था उसके थानेदार साहब तो शोले के गब्बर सिंह बन गए जिनसे दर्द कहने का मतलब की कई धाराओं में अनर्गल उत्पीड़न । इस कालाा बाजार में सिर्फ पैसा बोलता है । आधुनिक थाने आज लूट का अड्डा बन चुके है । यदि आज तंत्र का ये सबसे निचला एवं महत्वपूर्ण अंग अपना काम सूचिता और जवाबदेही से कर रहा होता तो अपराधी जेलों में होते और निरपराध बाहर होते एवं सभ्य समाज फल फूल रहा होता । मेरी निजी राय ये है कि यदि देश को त्वरित न्याय व मुकदमो की अनंत कतार से मुक्ति दिलानी है तो इन थानों के स्टेटशन अफसर की जवाबदेही तय करनी होगी । दुनिया मे बहुत सारे देश जहां लोकतंत्र फलफूल रहा है वहां एक कानून पाया जाता है जिसे – law of liability _ जिम्मेदार ठहराये जाने का कानून कहते है जिसमे कार्य करने वाला पूरी तरह से अपने किये गए कार्यबके प्रति जवाब देह होता है । यदि अन्वेषण करने वाली पोलिस को ये डर रहेगा कि उसके किये गए कार्य उसको भी हवालात की सैर कर देगा तो यकीन मानिए एक सुंदर लोकतंत्र अपनी पराकष्ठा प्राप्त करेगा । मित्रो बुराई किसी की सगी नही होती । भगवान भोले नाथ ने भस्मासुर को अजेय होने का बरदान दिया तो वे खुद ही उसके पीड़ित हुए । मैं आप सभी से एक ही प्रार्थना करता हु की एक सुंदर और सभ्य समाज का निर्माण करिये वरना जुर्म के दलदल में सिर्फ पाप की काई ही पैदा होती है जो आने वाली पीढ़ियों को अभिशप्त करती रहेगी। किसी फिल्म का एक गीत है —
बुरी है बुराई मेरे दोस्तो, बुरा मत सुनो ,बुरा मत देखो ,बुरा मत कहो ………..
खुद वो बदलाव बनिये जो आप दुनिया मे देखना चाहते है — मोहन दास करमचंद गांधी ।