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जीवन मे आखिर पैसे के बाद क्या ?
संतोष पांडेय
फ़िल्म राम तेरी गंगा मैली में नायक राजीव कपूर अपने चाचा सईद जाफरी से पूछता है कि ऐसी कौन सी चीज थी जिसने आपको सारे समाज को छोड़ने पर मजबूर कर दिया ,आपने बाउदी के खातिर कोठे पर घर बसा लिया ।क्यो ? क्यों कि आप बाउदी (कोठे की एक नर्तकी)से प्यार करते थे उसके बिना आप जीवन की कल्पना नही कर सकते थे ।एक तरफ दुनिया की सारी सुख ,सुविधाएं थी दूसरी तरफ बाउदी का निरीह प्यार ,एक ओर समाज का सम्मान दूसरी ओर कोठे की कालिख ,पर आपने कालिख को स्वर्ण समझा और समा गए उसकी नशीली आगोश में । क्योकि आप जानते थे दुनियावी चीजे क्षणिक खुशी तो दे सकती है पर स्थायी सुख नही ।
मित्रो फिल्मे समाज की नब्ज होती है ।कथानक हमेशा समाज की कथा,व्यथा से ही उपजता है ।समाज ,कहानी की पृष्ठभूमि होती है ,उसकी रूह होती है ।कथाकार केवल अपनी कल्पना की उड़ान से उसे जीवंत करता है ।
आज इस संवाद का याद आना क्यो प्रासंगिक है ? क्योंकि हमारे बीच से एक सितारा सुशांत सिंह असमय काल का ग्रास बन गया । क्या कमी होगी इस नायक को ,शायद थोड़े ही समय मे इसने जीवन की सारी उपलब्धि हाशिल कर ली थी ,पैसा था ,रुतबा था ,carreer की बुलंदियों पर ऐसा क्या हो गया वो आत्म हंता बन गया । मेरे ख्याल से धन, दौलत ,रुतबा जीवन की जरूरत है और प्रेम रक्त में प्रवाहमान प्राणवायु जिसके बिना मनुष्य के जीवन की सरगम सुर हीन बन जाती है ।
मित्रो जब हम जीवन की समय सारिणी में किसी के लिए ज्यादा समय व्यतीत करते है तो दूसरा काम अपने आप गौण हो जाया करता है ।आज बच्चा पैदा होता है और सबसे पहले जो चीजे वो पहचानता है वो चीजे है –पैसा और दूजी चीज मोबाइल फ़ोन ।हमने आपनो को कभी अपने पन का एहसास कराया ! जीवन की कम जरूरी चीजों को ज्यादा महत्व दे दिया और जो जीवन वायु थी उसका गला घोंट दिया ।
जीवन, मृत्यु तो होनी ही है पर मृत्यु का स्वयं वरण करना कदापि सही नही ठहराया जा सकता ।जीवन तो सरगम के सुर जैसा है कही उतार तो कही चढ़ाव पर स्पंदन अनवरत ….. (स्वदेशी चेतना मंच की पट से)