लेखक के कलम से

कही शिक्षा अपशब्द न बन जाय

संतोष पांडेय स्वदेशी चेतना मंच
अलीबाबा inc के सीईओ जैक मा ने कुछ समय पहले एक बात कही थी -,” यदि आप बंदर के सामने कुछ केले और ढेर सारा रुपया रख देंगे तो तो बंदर निसंदेह केले को उठाएगा ।उसको ये नही पता कि थोड़े से रुपये से ढेरो केले ख़रीदे जा सकते है । वो आगे कहते है भारतीय भी ठीक वैसे ही है वो अपनी -अपनी गठरी लेके भाग रहे है उनको इस बात से कोई फर्क नही पड़ता देश का क्या होगा ।इन बेवकूफो को कौन समझाए कि देश रहेगा तो ही वो रहेंगे और उनका अस्तित्व बना रहेगा । ”
आज देश ऐसे ही संक्रमण से गुजर रहा है जहां देश की प्रतिभाएं अंतिम सांस ले रही है । आज देश ऐसे हांथो में सफर कर रहा है जहां युवाशक्ति सर्वाधिक पीड़ित है । जिन नौजवानों ने ब्रिटानिया हुकूमत के न डूबने वाले सूरज पर ग्रहण लगा दिया,उस युवा शक्ति को आज के नेताओ ने अपाहिज बना दिया । आज की पूरी चर्चा उत्तर प्रदेश पर केंद्रित है । उत्तर प्रदेश अपने आप मे एक देश है ।जिसकी महत्ता न केवल राजनीतिक स्तर पर है बल्कि ये प्रदेश अनादि काल से होनहारों के लिए जाना जाता है। और इस प्रदेश में गंगा मैया की अंचल में बसा है -इलाहाबाद जहां प्रदेश के कोने -कोने से गरीब एवं मेधावी इस आस के साथ आते है कि, इनके सपने पूरे होंगे और ऐसा होता भी रहा ,जब तक कि समाज मे ईमानवाले बहुसंख्यक रहे ,। लेकिन समय का क्या तकाजा है ,इधर बेईमानो की संख्या समाज मे बढ़ी परिणाम ये हुआ कि ईमानदारी गाली बन गयी ।लोग पतित क्या हुए की उनके यहां धन दौलत की बाढ़ आ गयी और जहाँ ईमानदारी ,नैतिकता समाज की आदर्श थी ,वहां बेईमानी लोगो की गाइडिंग फ़ोर्स बन गयी ।और जब बुराई किसी समाज का आदर्श बन जाये तो समाज का सर्वनाश होने से कोई नही बचा सकता ।परिणाम ये हुआ कि इलाहाबाद में बर्षो से एक छोटे से कोने में तपस्या कर रहै विद्यार्थी अब नाउम्मीदी के ऐसे समुंदर में डूबते जा रहे है कि वहां से उनका लौटना मुश्किल सा लगने लगा है । यहां परीक्षाएं तो होती है लेकिन उसका परिणाम आते आते बच्चे बूढ़े हो जाते है । एक बीस साल का युवा इलाहाबाद में अपनी जवानी की शक्ति खो देता है और सपनों का तिलस्म ऐसा की इलाहाबाद न छोड़ते बनता है और न ही पकड़ते बनता है । एक हमारे मित्र ने तो इलहाबाद को “जवानी की कब्रगाह ” की संज्ञा से ही अविभूत कर दिया है । जौनपुर जो अपने नौकरशाहो के नाम से जाना जाता था जिसके बच्चे प्रत्येक वर्ष राज्य की प्रशानिक सेवा में बड़ी संख्या में उत्तीर्ण हुआ करते थे । वो जिला गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा में काफी पीछे छूट गया । इलाहाबाद- जौनपुर पैसेंजर ट्रैन तो प्रशासको की ट्रेन कही जाती थी । जनपद के हर तरफ से बच्चे आंखों में प्रशासक होने के सपने लिए ट्रेन में बड़े अकड़ से सवार होते थे पर जैसे – जैसे समय बीतता वैसे -वैसे न केवल सपने पीले पड़ते जाते बल्कि छद्म प्रशासक की खुमारी भी उतरती जाती थी। जब सपने मरते है तब अपार दर्द होता है । लेकिन ये जाहिल नुमाइंदों को कैसे समझ मे आएगा। विद्यार्थीअपने घर भी जाने से कतराने लगे है क्योंकि घर एवं गाँव वालों की घूरती आंखे सदैव यही प्रश्न पूछती है – भैया कब तक कुछ कर लोगे ? . दुर्भाग्य का आलम तो तब और संजीदा हो जाता है जब आप की ही उम्र का बंदा कमाने लगता है और आप पढ़ लिखकर भी बेरोजगार, घृणा का पात्र बन जाते हो । वो दिन बड़ा पीड़ा देता है जब दर्पण में आपकी आंखे स्वयं से आंख नही मिला पाती । प्रिय पाठक बंधु एक बात याद रखिये ” समाज वैसा ही बन जाता है जैसा वो प्रतिमान ग्रहण करता है ” । आज आप के पास पैसा है तो किसी स्पर्धा में आपकी नौकरी पक्की है— ये ऐसा उदाहरण हमारे नुमाइंदों ने गढ़ दिया है जिससे कोई मेहनत नही करेगा । आज समाज मे काले धन वाले ,अनपढों का सम्मान होता है । पढ़े लिखे ,उदार लोगो को कोई पूछने वाला नही है । बुरे लोगो की ऐसी माया की वो अपने संख्या बल का निरन्तर विस्तार कर रहे है और पड़े लिखे बिद्वान गाली बनते जा रहे है । मित्रो एक कुप्रथा एक हज़ार कुप्रथाओ को जन्म देती है । आज समाज मे हज़ारो समस्याएं आ चुकी है । और समस्या का समाधान केवल अच्छे एवं शिक्षित लोग ही करते है । अभी भी समय है हमारे समाज को अच्छे एवम ज्ञानी लोगो का संरक्षण करना होगा नही तो शिक्षा यदि गाली बनी तो समाज जरामय हो जाएगा । ” वारेन बुफेट ने एक बड़ी उम्दा बात कही थी ” आज कोई छाया में बैठा है क्यो की बहुत समय पहले किसी ने एक पेड़ लगाया होगा ” ।

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