॥ ➖हम एक दूजे के बनें➖ ॥
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👉 पति-पत्नी को एक दूसरे का यथार्थ रूप लेकर चलना आवश्यक है । मनुष्य में गुण-दोष होने स्वाभाविक है । गुणों में एकदम वृद्धि तथा दोषों को एकदम मिटाना संभव नहीं, जैसा भी यथार्थ स्वरूप एक-दूसरे का है उसी के अनुरूप एक-दूसरे से आशा रखी जाये । पति यदि नारी की आदर्श प्रतिमा को अपने मन-मस्तिष्क में बिठाये रखे व अपनी पत्नी से वैसा ही व्यवहार चाहे, पत्नी भी पति के ऐसे ही आदर्श स्वरूप को लेकर चले और पति को उस कसौटी पर कसे तो दोनों के हाथ निराशा ही लगती है । प्रेम के स्थान पर कटुता आरंभ होने लगती है, यथार्थ स्वरूप सामने रखकर चलने से एक-दूसरे को आशा से अधिक ही स्नेह-सहयोग देते हैं तथा परस्पर प्रेम बढ़ता है ।
👉 कोई पक्ष यह नहीं चाहता कि वह अनुपयोगी सिद्ध हो । पति के हाव-भाव, क्रिया-कलाप तथा कथन द्वारा इस बात की पुष्टि होती रहे कि पत्नी उसके लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही है, उसकी आवश्यकता जैसी विवाह के समय थी वैसी ही आज भी है तो पत्नी की दृष्टि में उसका सम्मान बढ़ जाता है । यही पत्नी के व्यवहार से भी झलके कि उसे अपने पति वैसे ही लगते हैं, जैसे विवाह के समय लगते थे तो दाम्पत्य स्नेह के सूत्र और भी दृढ हो जाते हैं ।
👉 इस उपयोगिता को जताने के लिए प्रशंसा करना, प्रेम प्रदर्शन करना आवश्यक है । यह क्रिया जितनी बार दोहराई जायेगी, परस्पर नवीनता तथा आकर्षण बना रहेगा । प्रशंसा करने में इन बात का ध्यान रहे कि “प्रशंसा” कार्यों की तथा गुणों की ही हो । शरीर तथा सौंदर्य की प्रशंसा शारीरिक आकर्षण को जन्म देती है । सत्कार्यों तथा गुणों की प्रशंसा एक दूसरे का सम्मान तो बढ़ाती ही है, साथ ही साथ उनकी और वृद्धि करने का उत्साह भी जगाती है ।
हिंदी दैनिक वैभव उजाला
Voice of Young India