लेखक के कलम से

कोरोना संकट में एक मजदूर की चिट्ठी

संतोष पांडेय स्वदेशी चेतना मंच

समय का भी क्या तल्ख नजरिया है कि कब किसी मजबूर को मजदूर बना दे और किसी क्षण किसी मजदूर को इतना मजबूर कर दे वह ऐसा कुछ कर गुजरे की जिसे वह नही करना चाहता है ।
कुछ दिन पहले एक घटना घटी ,हरियाणा के किसी गाँव में , एक साइकिल चोरी हुई , सायकिल चोर ने मालिक के नाम वही एक चिट्ठी रख दी। चिट्ठी पाने से पहले तक सायकिल मालिक बड़ा गुस्सा हुआ था , पर जैसे ही उसने चिट्ठी पढ़ी ,उसका गुस्सा करुणा में बदल गया । चिट्ठी में मजदूर ने लिखा था —-” प्रिय महोदय मुझे माफ़ करना । मैने आपकी सायकिल चुराई है , मैं एक मजदूर हूँ और मजबूर हूँ मेरा एक बच्चा है जो दिव्यांग है ,चल नही सकता और मेरे पास पानी खरीदने के लिए भी पैसे नही है ।मुझे यहां से 300 km दूर जाना है ।अतः मैं आपकी सायकिल चुरा रहा हूँ , मुझे क्षमा करियेगा ।
एक मजबूर मजदूर ”

जब सायकील मालिक ने चिट्ठी पढ़ी उसकी आँखों मे आंसू आ गए वह सोचने लगा कि हमसे बढ़िया तो वो बूढ़ी सवारी निकली जो किसी के काम तो आयी।
दोस्तो समय के गर्भ से अनगिनत कहानिया रोज पैदा होती है , कुछ सुखांत होती है तो ज्यादातर का अंत बड़ा दर्दीला होता है । लाखो लोग सपने लिए अपनी मातृभूमि को छोड़कर हज़ारो किलोमीटर दूर शहर इसलिए इसलिए जाते है कि उनके जीवन मे उजाला आएगा पर उनको क्या पता था कि इस उजाले का एक स्याह पक्ष भी है जो यह कहता है कि “दुनिया को आपकी जरूरत तब तक है , जब तक आप उसके लिए फायदे का सौदा है ,जिस दिन आपकी कीमत खतम ,आपकी हस्ती खतम ।
कोरोना यदि संकट लेके आया है तो उसी के साथ एक बड़ी सीख भी देकर जाएगा कि आगे आनेवाले समय में हमारे जीवन मे ज्यादा कुछ भी नही होगा सिवाय प्रेम के , कब किसी के जीवन का ढक्कन खुल जायेगा ,पता नही अतः अब से न कोई घमंड ,न भौतिक वस्तुओं का ज्यादा संचय , क्यो कि अब हम सभी जमीन पर बैठे है । सारी उपलब्धियां बेमानी सी हो गई है ।अब हमारे चेहरे के मायने खत्म हो गए है । अब हम बिना मुह ढके बाहर भी नही जा सकते ।एक अदने से वायरस ने हमारी औकात बात दी । जिस प्रकार से हर कड़वी चीज के में हमारे जीवन की अच्छाई निहित होती है ,उसी प्रकार कोरोना संकट आज नही तो कल समाप्त हो ही जायेगा , पर जो सीख ये देकर जाएगा वो सदैव स्थाई रहेगा । इस संकट ने ये बताया संसार मे हम है ,अतः इतने बड़े बनने की कोशिश न करे कि हमारे अपनो का साथ एवं उनकी दुआये ही हमारे साथ न हो । अंत मे किसी शायर की एक पंक्ति आपको नजर करता हु —–मोहब्बत न करते ,बड़ा काम करते ।
पर मोहब्बत से बढ़कर बड़ा काम क्या है।
प्रेम ,सहयोग ,दया ,दरियादिली, दैवीय गुण है ।इससे युक्त मनुष्य ही धरा का आभूषण है अन्यथा बहुधा लोग आते ही है यहां मरने के लिए ।

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