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आनंद मरा नही ,आनंद मरा नही करते| संतोष पांडेय @स्वदेशी चेतनामंच

साहित्य और समाज का चोली- दामन का साथ है । समाज की कथा – व्यथा ,साहित्य के लिए कथानक
तैयार करती है और यही कथानक4 कालांतर में समाज के रंगों में रक्त के समान प्रवाहित होने लगता है । फ़िल्म शोले का मशहूर संवाद —कितने आदमी थे ? ,कौन भूल सकता है। साहित्य की गठरी से कितनी सारी फिल्मे रुपहले पर्दे पर आयी ,कुछ ने बेहतर किया तो कुछ ने इतिहास रच डाला , और कुछ ने जीवन के मायने ही बदल डाले । ऐसी ही एक कालजयी फ़िल्म बनी थी — आनंद । ऋषिकेश मुखर्जी के लाजवाब निर्देशन , गुलजार के संवाद और राजेश खन्ना के जीवन से परे अभिनय ने फ़िल्म को कालचक्र से परे कर दिया । आज भी जब हम इस फ़िल्म को देखते है तो दिल अनायास कहने लगता है — जिंदगी बड़ी होनी चाहिए ,लंबी नही ।
वैसे तो फ़िल्म की कथा का समापन आनंद की मौत से होता है ।लेकिन इस फ़िल्म ने जीवन को ऐसे परिभाषित किया , जिसने बंजर धरती पर उम्मीद की फसल लहराई ।
संवाद 1: आनंद(राजेश खन्ना ) ,डॉ भास्कर बैनर्जी (बच्चन साहब)से कहता है -“क्या फर्क है 70 साल और 6 महीने की जिंदगी में ?,बाबूमोशाय जिंदगी बड़ी होनी चाहिए ,लंबी नही । इन छह महीनों मे जो लाखो पल मैं जीने वाला हू उसका क्या ? हमारी परेशानी क्या है ?पता है ? हम भविष्य में आने वाली परेशानियो को खींचकर अपने बर्तमान में ज़हर घोल देते है । बाबुमोशय मौत के डर से यदि ज़िंदा रहना छोड़ दिया तो मौत किसे कहते है ? जब तक जिंदा हूँ तब तक मरा नही ,जब मर गया तो साला मैं ही नही ।” **
हमारे जीवन के रंग मंच पर आनंद जैसे लोग बहुधा मिलते है जो हमारी नीरस ,नाउम्मीद जीवन मे नया सवेरा लाते है और हमे ये प्रेरणा दे जाते है कि , मृत्यु तो एक दिन आनी ही है मेरे दोस्त ! परंतु इसके आगमन के पहले जीवन की ज़िंदादिली का मृत्यु के सामने समर्पण क्यों ?
दूसरा संवाद जो कि इस फ़िल्म का प्रधान और दार्शनिक द्रष्टिकोण से पूरित है ,जिसमे आनंद ,डॉ साहब से कहता है कि ” बाबू मोशाय जीवन और मौत तो ऊपर वाले के हाथ मे है ।उसे न तो मैं बदल सकता हूँ और न तो आप ,हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां है ,जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथों में बंधी है ।कब, कौन ,कहाँ उठेगा ,कोई नही जानता “|
कोरोना के हताशा भरे माहौल में जब जीवन की गति थम सी गयी हो, प्रकृति की सजीवता ,नीरवता में तब्दील हो गयी हो ,तो हमारे जीवन को एक ऐसे ही आनंद की जरूरत है जो मुर्दाने चेहरे और बासी माहौल को एक नई उम्मीद दे सके । दोस्तो कोरोना की सच्चाई कुछ भी हो, ये हकीकत हो या -फसाना ,पर बर्बादी तो हो ही रही। मर तो एक मनुष्य ही रहा ,चाहे भूख से या डर से । एक ऐसा वायरस जिसके सामने सभी नतमस्तक है ,बिज्ञान ने भी हथियार डाल दिया है । मानवता जो किसी भी आपदा में सबसे आगे सरपट दौड़ा करती थी ,वो भी कही छिप सी गयी है ।
यदि कोई ब्यक्ति कोरोना संक्रमित हुआ ,तो मानो उस परिवार के ऊपर बज्रपात हो गया । कभी – कभी तो ऐसा लगता है कि ,पुरातन रिवाज में सम्पूर्ण परिवार का समाजिक बहिष्कार कर दिया गया हो । परिवार का कोई भी सदस्य समाज मे काल की तरह दिखता है,गोया कोरोना नही स्वयं यमदेव आ गये । समाज मे जो कुलीन धनपशु है ,वो अपने बैभव को भोगने के लिए, लोगो की वेदना से दूरी बनाये हुए है । और जो गरीब जनता है वो इस मुश्किल में है ,यदि कोरोना हुआ तो भोजन के लाले तो पड़े ही है ,ऊपर से दवा की कीमत सांसो की लय थाम देगी । दोस्तो जिंदगी ने किस मोड़ पर लाकर के खड़ा कर दिया है जहाँ सेवा करने वाले हाथ खाली है , और समाज को त्रास देने वाले लोग मंडित और आनंदित है ।
दोस्तों कोरोना इतना बड़ा नही है ,जिसके डर से लोग जीना छोड़ दे ।इसका कद इतना बड़ा नही है जो लोगो के कदमताल को थाम दे । जरूरत इस बात की है ,हम किसी भी सूरत में बटे नही ,टूटे नही ,और एक दूसरे का स्वयं सुरक्षित रहकर खयाल रखें। जिससे जीवन की गति और मति प्रभावित न हो । समय का तकाजा है कि जीवन के रंगमंच पर हम अपने किरदारों के साथ बखूबी न्याय करे ,जिससे जीवन का ” आनंद” मरे नही क्योकि “आनंद मरता नही ,आनंद मरा नही करते ”
कल हमारे बीच से एक और आनंद रुखसत हो गया ,प्यार और अदब से जिसे लोग ,” राहत इंदौरी” कहते थे । ऐसा आज़ाद -तबियत ब्यक्ति शायद इस ग्रह पर पुनः आएगा । जब भी मोहब्बत की बात होगी तब ये दिलफेंक कलंदर बहुत याद आएगा। उनका एक शेर याद आता है :
मेरे हुजरे में नही ,और कही पर रख दो ।
आसमा लाये हो ,लाओ, जमी पर रख दो ।।
उसने ,उस ताख पर कुछ टूटे दीये रखे है ।
चाँद ,तारे ले जाकर वही पर रख दो।।
उनकी एक अल्हड़ अदा लोगो को बहुत पसंद आई थी ::–“बुलाती है मगर जाने का नही ” लेकिन वो खुद चले गए चाँद-तारों की महफ़िल सजाने के लिए

*** आत्मिक श्रद्धांजलि जनाब राहत इंदौरी साहब **

भारत रत्न पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी की कुछ लाईने आपको समर्पित किये जाता हूँ—
इस विशद विश्व प्रहार में,
किसको नही बहना पड़ा,
सुख-दुख हमारी ही तरह ,
किसको नही सहना पड़ा,
फिर व्यर्थ ही ,क्यों कहूँ
मुझ पर बिधाता वाम है
चलना हमारा काम है
याद रखिये :
दुनियां बड़ी खूबसूरत है ।जरूरत इस बात की है हम इसके लायक बने और इसको और सुंदर बनाने में अपना योगदान दे, नही तो बबूल लगाने से उसके कांटे हमारी संतानो को चुभते रहेंगे . ये मेरा दावा है दोस्तो 



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