लेखक के कलम से

***प्रेम सबसे बड़ा वायरस है ***

संतोष पांडेय स्वदेशी चेतना मंच
ब्राज़ीलियाई साहित्यकार पाउलो कोएल्हो ने अपने एक उपन्यास – the alchemist में एक लाइन लिखी है ” मैं किसी से प्यार करता हूँ क्योंकि उससे प्यार करता हूँ। प्यार करने के लिए किसी कारण की जरूरत नही होती । “**
प्रेम निःशब्द है । अव्यक्त है । कहते है गूँगा है पर प्रेम करने वाले , एहसासों के प्रवाह से एक दूसरे के भावों को समझते है । प्रेमी दुनियां की किसी भाषा को समझता है और भाषा को समझने के लिए भाषा ज्ञान की जरूरत नही बल्कि अँखियों की भाषा ही पर्याप्त है । प्रेम ऐसा फल है जो हर मौसम में पाया जाता है , बस आपकी आंखें खुली हो ।
सावन महीना प्रेम का महीना कहा जाता है । बरसात की बूंदे जब जब जेठ की तपती धरती को स्पर्श करती है तो जिस प्रकार धरती तर-बेतर हो जाती है, ठीक उसी प्रकार प्रेम की बूंदे जिसके ऊपर गिरती है वो बावला हो जाता है । प्रेम मनुष्य को पुनर्जीवित करता है । यह हिरण हृदय में कस्तूरी के समान है जिसकी महक उसको भागने पर विवश करती है । प्रेम त्याग है ,तपस्या है ,मीरा का समर्पण है ,यह न होने पर भी होने की उम्मीद है । ये ऐसा दर्शन है जिसको बंद आंखों से भी देखा जा सकता है । प्रेम पाने का नाम नही बल्कि किसी के एहसांसो में खो जाने का नाम है । यह संसार की ऐसी मदिरा है जिसको एक बार पीने के बाद उसका सुरूर जीवन भर बना रहता है ।
इतिहास इस बात को बयां करता है – प्रेम उसी का ज़िंदा रहा जो मिल न सके । फर्रुखाबाद में एक सड़क का नाम — लैला — मजनू मार्ग है क्या इनके जैसे प्रेम करने वाले और नही हुए ? निश्चित तौर पर हुए होंगे पर वो त्याग , वो बिश्वास , दो काया पर एक प्राण , उनका समर्पण और लैला की खुशी के लिए मजनू अपने ऊपर पड़ते पत्थरो की बेपरवाही ;शायद ये ऐसी बाते थी जो लैला – मजनू को इतिहास में प्यार का पैगम्बर बना दिया ।
सावन की रुत मे प्रेममय हो जाना लाजमी है । कामदेव के रति प्रहार से इस समय कोई बच नही सकता पर आज प्रेम की बात करना बहुत आवश्यक है । लड़कियोके साथ बढ़तेअनाचार ,शीलहरण ,एकतरफा मोह में पड़े दीवानों के द्वारा लड़कियों के ऊपर तेजाब का फेका जाना ;ये बताने के लिए काफी है ,कि ये प्रेम नहो हो सकता । प्रेम का अर्थ है ,प्रेमी का खुद को अपने इष्ट कोे को पूरी तरह से सौप देना । प्रेम याचना नही ,प्रेम दान है और केवल देने वाले कि कुव्वत है जो आशिकी कर सकता है ।
प्रेम के पवित्रता का इतिहास ही मानव सभ्यता का इतिहास है ।प्रेम जीवन है ,इसके बिना सारा संसार एक बंदीगृह है । दो काया का शारीरिक मिलन प्रेम नही होता, ये तो हवस है ,जो जानवरों का फन है । आज बहुतेरे इसी को प्रेम कहते है ।**प्रेम पपीहा का स्वाति के एक बूंद के लिए तड़पन है जिसके मिलने या न मिलने से वह ज़िंदा रहता है ,या मर जाता है ।प्रेम वो होता है ,जब प्रेमी अपनी प्रेयसी की खुशी की खातिर अपनी खुशी भूल जाय न कि एक तरफा मोहब्बत में अपने साध्य की खून का प्यासा बन जाये ।
आज कल कोरोना का कहर चहुँओर है । ये समय नाउम्मीदी का समय है ।ऐसे घोर निराशा के समय अपनो में प्रेम का होना बेहद जरूरी है । समाज के एक सजग प्रहरी होने के नाते हमारा फ़र्ज़ है कि अपने परिवार के सभी सदस्यों का ध्यान रखे । थोड़ा ही हो पर बाँटकर खाने की आदत डालें और अपने इर्द -गिर्द स्वयं की हस्ती भर किसी को भूखा न सोने दे । यही प्रेम है और यही पूजा है । **प्रेम बलिदान सिखाता है ,हिसाब नही । प्रेम हृदय को छूता है ,मष्तिष्क को नही ।**कहते है ,प्रेम सबसे बड़ा वायरस है यह महामारी को भी पराजित करेगा और जिंदा भी रहेगा ।यही प्रेम का मुस्तकबिल है ।**
चलते- चलते **पाउलो कोल्हो के एक और कथन से आपका परिचय कराता हु जिसमे वो लिखते है “”***यदि आप किसी को दिल से चाहते हो तो पूरी कायनात उसको आपसे मिलाने के लिए षडयंत् रचने लगती है । *** इनके इन कथन को किसी फिल्म में कुछ इस प्रकार से लिया गया —- इतने शिद्दत से तुझको पाने की कोशिश की है ;
की हर जर्रे ने तुझसे मिलाने की साज़िश की है ।
(Please share my thought if you like it) mob. 6387174651

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