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पर उसका मन तो अपनी प्रेयसी के पास ही रहता है
****लिखे जो खत तुझे ……***
संतोष पांडेय ,स्वदेशी चेतना मंच
अतीत चाहे जैसा भी हो उसकी स्मृतियां प्रायः सुखद होती है । अपने फुरसत के क्षणों में हम जब यादों के गरीचे में भ्रमण करते है तो कुछ खट्टे -कुछ मीठे वाकयात से बाबिस्ता होने लगते है। हमारी यादों में हिलोरे लेता डाकिया और उसके खाकी झोले में बंद चिट्ठियाँ उन जीवंत पलों में से एक है जो अब भूले बिसरे से लगने लगे है ।
डाकिया इतिहास के विविध कालखंडों में अलग अलग कलेवर में थे । महाकवि कालिदास द्वारा रचित काव्य “मेघदूत” जो एक दूत काव्य है जिसमे यक्ष और उसकी नावविवाहिता यक्षिणी की प्रणय कथा है । कथानक को बड़े सूंदर तरीके से बुना गया है ।कथा का सारांश यह है : कुबेर, यक्ष से नाराज होकर उसे अलकापुरी से निकाल देता है ।यक्ष सुदूर पर्वत की एक चोटी पर बादलों के बीच अपना बसेरा बनाता है । पर उसका मन तो अपनी प्रेयसी के पास ही रहता है और सावन की ऋतु आने पर जब मेघ बरसने लगते है; तब यक्ष को यक्षिणी की याद सताने लगती है परंतु किसी भी प्रकार से अपना हाल-ए- दिल उस तक पहुंचाने में नाकाम रहता है ; अतः वह विचरण करती काली घटाओं से एक संदेश अपनी बिरहिणीन को भेजता है; यक्ष कहता है :: हे धरती के तपन को सुप्त करने वाले मेघ! जाकर मेरी प्रेयसी से कह देना , तुम्हारी अनुपस्थिति मेरे हृदय में एक खलिस पैदा करती है और सावन की बूंदे जो तुम्हारे होने पर शरीर को शीतल करती थी वो तुम्हारे न होने पर मेरे शरीर में चुभती है। अतः अब तुमसे अलग रहना बहुत मुश्किल है । संभवतः कालिदास के कल्पनाओ के बादल विश्व के सर्प्रथम डाकिये थे । और तब से लेकर अब तक डाकिये विविध रूपो में विरहदग्ध प्रेमी युगलों के लिए एक पैगाम वाहक रहे है । एक और कथा है :राजा नल और दमयंती की:–नल-दमयंती की प्रेम कथा एक लौकिक प्रेम की अलौकिक दास्तान है । नल निषाद प्रदेश के राजा का पुत्र है ,जो बहुत बहादुर , आकर्षक और सिद्धहस्त घुड़सवार है । उसकी बहादुरी के किस्से बिदर्भ प्रदेश के राजा की पुत्री दमयंती तक पहुंचता है। तथा दमयंती का रूप सौंदर्य और शरीर सौष्ठव लोकसंवाद के जरिये राजकुमार नल तक । दोनों बिना एक दूसरे को देखे एक दूसरे के हो जाते है। कहानी आगे बढ़ती है समपूर्ण कहानी में नायक -नायिका को मिलाने में हंस का एक जोड़ा संदेश वाहक का कार्य करता है । अतः प्रेम के आंगन में नायिका की अगन और तड़पते नायक को एक करने में डाकिया की महती भूमिका रही है ।
किसी के प्रति आकर्षण प्रेम का आगाज है पर उन दोनों के बीच का माध्यम उस प्रेम का परवाज है । समय की गोद मे कितनी प्रेम कहानियाँ उपजी और कितनी खो गयी ;पर हर कहानी में कोई न कोई हरकारा अवश्य था । पहले मेघ ,घटा,नदी ,पवन प्रेमातुर हृदय के डाकिये थे ; पर समय परिवर्तन हुआ और डाकिया का स्वरूप भी बदला , अब कपोत प्रेयसी के ह्रदय के कामाग्नि को उसके प्रियतम तक ले जाने लगे । प्रेम ऐसा जज्बा है जिसको इंसान तो क्या जानवर भी उतनी ही शिद्दत से समझता है । यदि ऐसा नही होता तो एक बेजुबान पक्षी कैसे ये जान पाता कि कोई संदेशा किसको देना है । पक्षी मिलन के दिनों में प्रेमी युगल के शरीर की गंध से उनकी काया को पहचानता था । और जब दोनों दूर होते थे तो उनका शारीरिक गंन्ध ही उन तक पहुचने का पता होता । और इस प्रकार एक पक्षी इंसानी प्रेम के लिए डाकिया बन जाता था ।अब इतिहास के काल क्रम में थोड़ा और दूर आते है जब डाक देने और लें आने के लिये घुड़सवार ,पायक ,जल डाक का प्रचलन हुआ । स्वतंत्रता से पहले सभी रियासतों की अपनी अलग -अलग डाक चौकियाँ हुआ करती थी पर अंग्रेजो के जाने के बाद एक सुव्यस्थित डाक हमारे देश मे प्रारम्भ हुई । और डाक खाना और डाकबाबू अस्तित्व में आये । एक जमाना था जब हर व्यक्ति को अपने अजीज की खबर पाने हेतु डाक बाबू का बड़ी उत्सुकता से इन्तेजार रहता था । डाकिये का जादुई झोला कही मंगल ,कही अमंगल ,कही मिलन तो कही जुदाई का समाचार भले ही देता था पर पत्र पाने की ललक हर घर को थी । आज से करीब तीस -पैतीस साल पहले जब देश मे शिक्षा का प्रसार इतना नही था और बहुसंख्य लोग थोड़ा या बिना पढ़े -लिखे थे ,तब पत्र लिखने और पढ़ने के लिये डाक बाबू एक मात्र जरिया थे । किसी गाँव मे यदि कोई पढ़ा – लिखा होता तो उसकी बड़ी इज्जत होती थी । वैसे तो पत्र लेखन बड़ा दुष्कर कार्य था फिर भी पत्र लेखक को बड़े धैर्य के साथ लिखना पड़ता क्योकि पत्र लिखवाने वाला बार – बार शब्द बदलता और लेखक इस पूरी प्रक्रिया में खीज जाता था ,एक किशोर लेखक के तौर आनंद तो तब आता था जब कोई औरत अपने पति को पत्र लिखवाती थी जिसमे पत्र संबोधन के तौर पर उसे प्राणनाथ ,प्यारे सजन , सावरियां इत्यादि कहना पड़ता और वो शरमा के दांतों तले पल्लू दबा जाती थी ।कितने नेक दिन थे वो जब हया औरतों का गहना और बरसो पिया का इंतजार और कुछ दिनों का संयोग इनका प्रारब्ध था ।
पहले संचार के आधुनिक साधन तो थे नही ;खत ही आशिकी का मुख्य जरिया थी । उन खतों को बड़े ही सुंदर तरीके से सजाया जाता था और एक – एक शब्द को इस तरह से गढ़ा जाता कि कवि की कल्पनाएं भी फीकी पड़ जाय । बिरह प्रेम का पुरस्कार है ।दूरियां यद्यपि दर्द देती है फिर भी प्रेम की अग्नि में तपा प्रेमी का व्यक्तित्व खरा सोना बना जाती है । डाक बाबू प्रेमी युगल के खासे अपने होते थे क्यो कि प्रेम पत्र का किसी गलत हाथ मे जाने का अंदेशा होता था । आशिकी ,सदैव कुछ लोगो की रहमो करम पर होती है जिसमे डाकिया कोई भी हो सकता था ,वो अपना भी और अपनाया गया भी ।
चिट्ठीयाँ संचार की मुख्य साधन थी ।डाकखाना अपना था और डाक बाबू अपने से लगते थे ।विकास की हवा ने चिट्ठी के उस संसार को बहा डाला जिसमे कभी अपनो चहक और महक होती थी । खत ,जिसमे नवविवाहिता के भोले प्रेम के पुट होते थे जिसको उसका पति सुदूर परदेस में दिल से लगा कर बड़े सावधानी से रखता था और जब अपनी शरीके- हयात की याद आती तो उसे बार -बार पढ़ता रहता …………
आजकल कोरोना की भय चारो दिशाओ में व्याप्त है । इस महाकाल में हमारे दिमाग मे नानाप्रकार खुराफात आ सकते है । कुछ लोग अपने भविष्य को लेकर आशंकित है तो कुछ लोग इसी महामारी में करोड़पति बनना चाहते है और इन मुरादों के पूरा न होने पर अवसाद का शिकार हो सकते है । अतः महामारी को अवसर बनाते हुए हमें अपने अंतर्मन में झांकना चाहिए, जिससे हमारी सख्सियत को प्रेम की भूली बिसरी चिट्ठियो की तरह बार बार पढ़ा जाय और लोगो के जीवन मे हमारा अक्स डाक बाबू की तरह जीवंत रहे । (समर्पित– बचपन के डाक बाबू विशुनाथ पटेल जी जमालापुर पोस्ट आफिस)
याद रखिये रतन टाटा का वाक्य “2020 केवल ज़िंदा रहने का वर्ष है ”