(आज़ाद भारत की दास्ताँ)
आज हिंदुस्तान अपनी आजादी के 74 वे सालगिरह का जश्न मना रहा है । हमारा राष्ट्र 15 अगस्त 1947 को अस्तित्व में आया । कालचक्र चलता रहा ,देश शिशु से किशोर, किशोर से प्रौढ़ हो चुका है । आज़ादी के उपरांत इतने वर्षो में देश ने कई मील के पत्थरों को छुआ भी , पर हमारा देश अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की लक्षमण रेखा को छूने में कितने पग और धरेगा ,आइये इसकी पड़ताल करते है ।
किसी देश के विकास के मुख्य संकेतक वहां का समाज , शिक्षा , कानून , स्वास्थ्य, रोज़गार इत्यादि होते है । आइये इन विविध आयामों का एक -एक करके विश्लेषण करते है ।
समाज: किसी भी देश के विकास में उसके सामाजिक ताने -बाने का प्रमुख योगदान होता है । जब हमारा देश परतंत्र था ,तब यहां के नागरिक वैचारिक रूढ़िवाद से स्वंतंत्र थे । समाज विविध स्तरों में तब भी बंटा था और आज भी बंटा है ,पर परतंत्र भारत का समाज एकांगी नही था। धन इतना था नही ,इसलिए जरूरत कहे या संस्कार लोग एक दूसरे का ख्याल रखते थे । लोगो की सम्मिलित शक्ति से ही आज देश आजाद है । यदि आधुनिक भारत की तरह देश तब भी जातिवाद , क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद, की संकीर्ण सोच से ग्रसित होता तो क्या ये देश किसी भी तरह से आज़ाद हो पाता ?शायद कभी नही । मकाइबर एवं पेज के शब्दों में “समाज, सामाजिक संबंधों का जाल है “। जिस प्रकार जाल के सभी गांठो की क्रियाशीलता ही उसका अस्तित्व है, ठीक उसी प्रकार से समाज का अस्तित्व उसके लोगो की सामूहिक गतिशीलता पर निर्भर करता है । किसी ने कितनी सही बात कही है ” ईश्वर ने संसार बनाया था ,पर हमने उस संसार को टुकड़ो में बांट दिया । आधुनिक समाज संकुचित है । हम आधुनिक तो हुए लेकिन पहनावे से ,बिचार एवं ब्यवहार से नही । जरा सोचिये जिस समाज को इन 70 वर्षों में और परिष्कृत होना चाहिए था ,वो निरंतर एकांगी और लकवाग्रस्त होता गया ,तो बताइये हम स्वंतंत्र हुए की परतंत्र ?
शिक्षा ::- शास्त्रो में बिद्या को परिभाषित करते हुए लिखा गया है — “सा विद्या या विमुक्तये ” । सच्ची शिक्षा वही है जो जीवन की सभी समस्यायों से मुक्ति दे । रोग ,द्वेष , अभाव ,दुर्गुण ,कुसंस्कार से जो शिक्षा हमे मुक्त कर दे वही प्रभावी शिक्षा है । और यही शिक्षा हमे विद्वान बनाती है । लेकिन खेद तो इस बात का है आधुनिक शिक्षा हमे सिर्फ आभाव से मुक्त करती है ।हमारे चरित्र का निर्माण करती ही नही । बच्चो में भयानक स्पर्धा पैदा करती है ,जो आगे चलकर हमारे बच्चो को ईर्ष्यालु बनाता है । स्वामी विवेकानंद के शब्दों में ” शिक्षा हमारे अंतर्निहित शक्तियों का विकास है ।” शिक्षा का अर्थ है हमारे व्यवहार में परिवर्तन ” से है ।
आज हमारे देश मे साक्षरता बढ़ाने पर तो अत्यधिक जोर दिया जाता है लेकिन हमारे समझ को विकसित करने में नही । आधुनिक शिक्षा ने हमे धनाभाव से मुक्ति तो दे दी ,पर हमारी नेकी को हमसे छीन लिया । तो ये बताइये कि देश की आधुनिक शिक्षा ने हमे मुक्त किया या गुलाम बनाया ?
*** कानून *** ::—– लार्ड मेंकाले ने भारतीय शिक्षा अधिनियम और इंडियन पीनल कोड दोनों का प्रारूप बनाया । लार्ड मैकाले ने भारतीय न्याय व्यवस्था को ऐसा तिलस्म बनाया जिससे निकलना असंभव था । गुलाम भारत मे जो भी कानून अंग्रेजो ने बनाया था ,वो क्रांतिकारियों के उत्साह का दमन करने के लिए था । दूसरे शब्दों में भारत पर राज्य करने वाले अंग्रेजो के प्रतिनिधि यदि कोई अच्छा कार्य किये तो ये मात्र संयोग ही था , गवर्नर जनरल या वायसरायों ने जो भी कार्य किया वी सिर्फ ब्रिटिश सत्ता के हितार्थ ही था ,न कि भारत के कल्याणार्थ ।
मैकाले ने इंडियन पीनल कोड को प्रारूपित करने के बाद एक चिट्ठी इंग्लैंड में अपने पिता को लिखी थी, वो उस चिट्ठी में लिखता है ” मैने भारतीयों के लिए ऐसे कानून का निर्माण कर दिया है ,जिसके रहस्मयी संसार से वो ताउम्र बाहर नही आ पाएंगे । और इस कानून के लागू होने से कोई भी न्याय नही पा सकेगा । ” (मित्रो आप मेरे इन शब्दो की सत्यता इंटरनेट पर मैकाले द्वारा लिखी गयी चिट्ठी में जांच सकते है )
मैकाले के न्याय की ऐसी कृपा ,आज आप किसी को चोर कह दो, तो वह जीवन भर ये सिद्ध करने में बीता देगा कि, वो चोर नही है और अपराधियो का हौसला ऐसा की वो इस कानून के तहत इसी कानून को ठेंगा दिखाता है ।
आज भारतीयों जेलो में लगभग 68 प्रतिशत ऐसे लोग बन्द है, वे या तो बेगुनाह है ,या झूठे तौर से आरोपित है ,लेकिन न्याय महंगा होने की वजह से अपनी सजा से भी ज्यादा सजा भोगने पर अभिसप्त है । प्रिय मित्रों मुझे ये बताइये तब” कैसी आज़ादी ,और किसकी आज़ादी ?
मैं जिले के मुखिया से इस मंच के माध्यम से प्रश्न पूछता हूं कि क्या आपने जिला कारागार में पक रहे भोजन की गुणवत्ता को परखा है ,शायद कभी नही । जिस थाली में परोसे जाने वाला भोजन शायद कुत्ता भी नही खायेगा उस भोजन को जेल में बंद कैदी खाते है । संविधान ने हमे जो मूलभूत अधिकार दिए है उन अधिकारों में एक अधिकार है —{right to life } जीवन का अधिकार । क्या ये मौलिक अधिकार जेलो में बंद कैदियों के लिए नही है ? क्या वे लोग मानव नही है ? क्या किसी पर अंगुली उठाना उसे दोषी सिद्ध करने के लिए काफी है । जिस गुलाम भारत के लोगो के कष्टों को दूर करने के लिए हमारे जाबाज क्रान्तिदूतो ने हॅसते हुए फाँसी के फंदे को चूमा ,शायद हमारे हुक्मरान उनकी आत्मा को कष्ट दे रहे है । हमारे बांकुरों ने साधारण आवाम की बेदना की मुक्ति की खातिर अपने निजी सुख का परित्याग किया । इन वीरो ने कभी नही सोचा होगा कि “गोरे अंग्रेजो का स्थान ,काले अंग्रेज ले लेंगे ” ।
भारत दो शब्दों का योग है -( भा +रत ) भा का अर्थ है – ज्ञान ,और रत का अर्थ है लीन अर्थात देश जिसके वासी ज्ञान में लीन है ,वही भारत है । वो देश जिसने सदियों से संसार को राह दिखाया ,जिसके ऋषि मनीषियों ने बांस के टुकड़े की मदद से ग्रहों की चाल सदियों पहले बता दी ,जिसके मौलिक खोजो का कोई सानी नही रहा , बड़े कष्ट के साथ कहना पड़ रहा है आज वही भारत नकलची हो गया है । हम दुनिया के किसी भी देश की नकल मारते है और खुश हो जाते है।
****रोजगार की स्थिति *** भारत दुनिया की दूसरी बड़ी जनसंख्या वाला देश है । हमारे देश मे कुल 127 करोड़ लोग रहते है ,जिसमें युवाओं की संख्या दुनिया मे सबसे ज्यादा है । इतने हाथो को कार्य प्रदान करना वाकई बाद मुद्दा है परंतु शिक्षा को यदि स्वरोजगार से जोड़ा गया होता तो शायद आज देश की स्थिति और होती । यदि किसी परिवार में एक कमाने वाला होगा और 10 बैठ कर खाने वाले लोग होंगे, तो परिवार सिर्फ जी सकेगा । किसी प्रकार का विकास उसके लिए दूर की कौड़ी होगी । ठीक इसी प्रकार से जब हमारे देश की बहुसंख्य आबादी के कौशल का उपयोग नही होगा तो ऐसी आबादी वरदान नही अभिशाप हो जाएगी । अतः समय का तकाजा यह है कि अब सरकार को ईमानदारी के साथ प्रयास करना होगा, जिससे पढ़े -लिखे लोग रोजगार प्राप्त करे ,और कौशल विकास कार्यक्रमो बढ़ावा देकर बहुसंख्य आबादी के लिए स्वरोज़गार की ब्यवस्था की जाय ।जिससे कोई भी पराश्रित न रहे ।
दोस्तो , कोई देश महान नही होता बल्कि वहां के लोग महान होते है । देश हमारे रंगों में बसता है ,देश हमारे साथ चलता है और देश हमारे व्यवहारों में दिखता है ।
हमारी काया एक दिन मिट जाएगी पर हमारे द्वारा किये गए कार्य देश की मिट्टी में सुगंध बनकर आनेवाली पीढ़ियों को महकाती रहेगी ।
प्रण लीजिये —-
” हम रहे या न रहे पर ये देश रहे । इसकी आन ,बान और शान सलामत रहे , इसकी हस्ती अमिट रहे ”
” Country first”
( संतोष पांडेय @ स्वदेशी चेतना मंच )
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काल करे 7039403464
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