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कही मोबाईल आपकी खुशी में तो ग्रहण नही लगा रहा ????

संतोष पांडेय ,स्वदेशी चेतना मंच
आचार्य श्रीराम शर्मा के शब्दों में “मनुष्य परिस्थितियो,और व्यवस्थाओं का दास नही ,वरन उसका निर्माता ,नियंत्रक एवं स्वामी है” । कहते है मनुष्य के लिए तकनीक है ना कि तकनीक के लिए मनुष्य । मानव ने अपनी जरूरत के हिसाब से विभिन्न तकनीकों का विकास किया पर अब यही तकनीकी विकास मानव के पैरों की बेड़ी बनती जा रही है । चार्ली चैपलिन के शब्दों में ” रेडियो और टेलीफोन के आविष्कार ने दुनिया को एक गाँव का स्वरूप दे दिया पर हमने एक दूसरे से बात करना बंद कर दिया । हवाई जहाज ने दूरियों को समाप्त कर दिया पर हमने लोगो के लिए अपने घरों के दरवाजे को बंद कर दिया । ये कैसा विकास है जिसमे लोगो का दिमाग तो विकसित हुआ पर दिल सिकुड़ते जा रहे है। दिनों का कैसा फेर है ,पहले सायकिल से किसी के घर पहुंचने पर चार दिनों का आतिथ्य बड़े भाव से मिलता था ,आज दूरियां तो कुछ मिनटो में सिमट गई पर उस मेहमान नवाजी का लोप हो गया ,जो निश्छल थी । किसी का हालचाल जानने के लिए चिट्ठियो का एक दौर था और डाक बाबू के आने पर जो खुशी मिलती थी वो आज के समय मे किसी गड़े खजाने को पाने पर भी शायद ही मिले । टेलीविज़न ने गावों में तमाशा दिखाने वाले लोगो को समाप्त किया और मोबाइल ने चिट्ठियो के अद्भुत संसार को लील डाला । तकनीकी विकास ने हमे रोबोटिक मानव बना दिया ।
हँसी और खुशी स्वतः उत्त्पन्न होती है दुनिया का कोई कारण इस ईश्वरीय गुणों को पैदा नही कर सकता । मनुष्य सामाजिक प्राणी है, इसे ये ईश्वरीय देंन लोगो के साथ बैठने उनके सुख -दुख बॉटने से ,बिना किसी कारण और मूल्य के मिल जाती थी । लोगो के पास बेईमानी के काले पैसों ने समाज के इसी ताने -बाने पर ही प्रहार कर दिया जिनसे ये अद्भुत चीजे मिला करती थी ।
सामाजिक ढांचा क्या गिरा उसकी सहयोगी संस्था परिवार ,टूटते -बिखरते चले गए । किसी से कोई बात करने वाला नही रहा । और जबसे जीवन मे ***मोबाइल*** ने दस्तक दी ,सारे रिश्ते -नाते आभासी दुनियां में चले गये। मोबाइल ने हमारे जीवन को जितना नुकसान पहुचाया उतना और किसी तकनीक ने नही ।* लोगो को एकांतवासी बना दिया । सारे रिश्तों की गर्माहट अवास्तविक दुनियां के ऐसे प्लेटफॉर्म पर पहुँच गयीं जहां बिना एक दूसरे से मिले फेस बुक और व्हाट्सएप्प पर सारी औपचारिकताएं निभा दी जाती है । **जीवन की जिंदादिली खानापूर्ति में तब्दील हो गयी ** । अब लोग सपनो में मिलते है वास्तव में मिलने के लिए किसी के पास समय कहाँ ।
याद रखिये :तकनीक से हमारा मोह भंग देर सबेर हो ही जाता है, जब तक मोबाइल का रिचार्ज महंगा था तब तक तो फ़ोन आसानी से उठ भी जाता था , जबसे बात करने में पैसा कम लगने लगा लोग बात करने से भी बचने लगे है। क्यो कि बर्तमान समय मे मोबाईल समय का दुरूपयोग करने का साधन बनता जा रहा है ।***आज जब लोग पास – पास होते है तो मोबाइल के व्हाट्सएप्प मैसेज में लीन रहते है और जैसे ही दूर जाते है उनको माया ऐसी ठगती है कि घंटो बात करना चाहते है । मित्रो ये किसी के प्रति किसी का प्रेम नही है बल्कि खुद का समय काटने के लिए किसी नेक आदमी के समय का दुरुपयोग है । मोबाइल ने जीवन का रस चुरा लिया ,बच्चों के संस्कार का भक्षण कर लिया ,बुजुर्गो की संगत में उस पारंपरिक ज्ञान और अनुभव पर ग्रहण लग दिया जो उनसे बाते करने में मिलती थी । आज आपका बच्चा रिश्तों के बिना तो रह सकता है पर मोबाइल के बिना नही ।जो संस्कार आपके बच्चों में परिवार में आकार प्राप्त करते थे वो समाप्त हो गये उनकी जगह बच्चे मोबाइल पर दुनिया भर की बुरी और संवेदनहीन चीजे सीख रहे है जो उनके और समाज दोनों के भविष्य लिए घातक है । बच्चो का बचपन छीन रहा है ;जो बच्चे परियों की कहानियां सुनकर समाज को दिशा देते थे वही बच्चे कम उम्र में ही जवान होकर समाज को नरक बना रहे है । आज बीस साल का बच्चा जब किसी लूट या कत्ल में संलिप्त मिलता है तो मन के तार यही कहते है कि *** कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन*** ।
मोबाइल की सबसे बड़ी मार बुजुर्गो पर पड़ रही है इनसे बतियाने वाला कोई नही है । ये बृद्ध जन अपनी दुख ,तकलीफ को किससे कहे । जब इनके स्वयं के बच्चे बिना अर्थ ही व्यस्त हो और इनसे कतराते हो तो नई पीढ़ी का क्या दोष । मुंशी प्रेमचंद जी ने कहा था ” जिस समाज मे वृद्धों का सम्मान नही होता वो समाज निरंतर पतन की तरफ अग्रसर होता है ” । आज इसलिए समाज निरंतर गर्त में जा रहा है जिसके बचने की हाल फिलहाल में कोई उम्मीद तो नही दिखती ।
प्रिय पाठक गण हम मानव है और हम स्वभाव से ही समाज मे रहने के आदी है । सन्यासी और दुर्व्यसनी ही अकेले रह सकते है । एक सामान्य मनुष्य दोनो नही बन सकता,अतः जितना जल्दी हो सके हमे मोबाइल के अतिप्रयोग को छोड़ना होगा और अपने निजी और सामाजिक जीवन का मोबाइल के साथ एक सामंजस्य स्थापित करना होगा जिससे मनुष्य जिंदा रहे उसकी मानवता ज़िंदा रहे तथा तकनीक मानव जीवन को पोषित और पल्लवित करती रहे न कि स्वयं निंदा की पात्र बने ।

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