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अंदल जयंती के अवसर पर भगवान विष्णु की परम भक्त देवी अंदल के बारे में सम्पूर्ण जानकारी
अंदल जयंती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी
आज हम अंदल जयंती के अवसर पर भगवान विष्णु की परम भक्त देवी अंदल के बारे में विस्तार से बात करेंगे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन देवी अंदल का जन्म दक्षिण भारत के तमिलनाडु क्षेत्र में हुआ था। उनके जन्म दिवस को पर्व के रूप में मुख्य रूप से तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल के कुछ हिस्सों में आदि के महीने में मनाया जाता है। आपको बता दें, इस वर्ष अंदल जयंती 1 अगस्त को मनाई जाएगी।
देवी अंदल श्री रंगनाथ (भगवान विष्णु) की अनन्य भक्त थीं, जिससे उन्हें लोगों के बीच देवी का दर्जा प्राप्त हुआ। देवी अंदल अपनी रचनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपने भक्ति भाव को अपनी कविताओं समेत सभी रचनाओं में पिरोया है। भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और आस्था के कारण आज भी लोगों के बीच देवी अंदल को पूजनीय स्थान प्राप्त है।
चलिए अब बात करते हैं देवी अंदल द्वारा रची गईं धार्मिक रचनाओं के बारे में-
उनके द्वारा लिखी गयी कविताएं भगवान विष्णु को समर्पित हैं और उनके भक्तिभाव का प्रतिबिंब हैं। उनके द्वारा रची गयी प्रमुख धार्मिक रचनाएं थिरुप्पवाई और नाच्सियर तिरुमोल आदि हैं। थिरुप्पवाई में कुल 30 छंद हैं और नाच्सियर तिरुमोली में कुल 143 छंद मौजूद हैं।
अब हम बात करेंगे देवी अंदल और भगवान रंगनाथ की पौराणिक कथा के बारे में-
देवी अंदल ने 15 वर्ष की छोटी आयु में भगवान रंगनाथ के साथ विवाह करने की अपनी इच्छा प्रकट की थी। मान्यताओं के अनुसार, कुछ लोग देवी अंदल के पिता के पास गए और उनसे कहा कि उन्हें भगवान रंगनाथ सपने में आए थे और उन्होंने आपकी बेटी अंदल को दुल्हन बनाकर, उनके मंदिर ‘श्रीरंगम’ में लाने को कहा हैं।
श्रीरंगम नामक मंदिर तमिलनाडु में, वैष्णव भगवान रंगनाथ का बहुत ही प्रचलित मंदिर हैं. दूसरी ओर भगवान रंगनाथ ने श्रीरंगम मंदिर के पुजारियों को सपने में दर्शन देकर देवी अंदल के स्वागत की तैयारियां करने के लिए कहा। इसके बाद जब देवी अंदल एक दुल्हन के रूप में श्रीरंगम मंदिर में पहुंची, तो वे एक प्रकाश रूप में परिवर्तित हो गईं और भगवान विष्णु के अन्दर विलीन हो गईं। इस घटना के घटित होने पर वहाँ गाँव में देवी अंदल और भगवान रंगनाथ का एक मंदिर ‘श्रीविल्लिपुत्तुर’ बनाया गया हैं।
आज भी इस मंदिर में आदि पूरम का त्योहार 10 दिनों तक मनाया जाता है, जिसके अंतिम दिन पर देवी अंदल और भगवान विष्णु के विवाह की सभी रस्में निभाई जाती हैं। इस शादी को ‘थिरुकल्यानाम’ के नाम से भी जाना जाता है। यह महोत्सव देर रात तक चलता रहता हैं और फिर ‘आरती’ गाई जाती हैं और अंत में प्रसाद वितरण होता हैं। इस पावन दिन पर भक्त गण ‘थिरुप्पवाई’ और ‘ललिता सहस्रानामम’ का भी पाठ करते हैं।
अब हम बात करेंगे कि किस प्रकार घर में आदि पूरम की पूजा विधिवत की जाती है-
आदि पूरम के दिन घर की औरतें जल्दी उठकर विवाह की तैयारियां करती हैं। मान्यताओं के अनुसार, देवी अंदल को कमल का फूल, लाल रंग और कल्कंदु चावल बहुत पसंद हैं, तो उन्हें यह अर्पित किया जाता है। मंदिरों में देवी अंदल की प्रतिमा को सिल्क की साड़ी, गहनों और फूलों की माला से सजाया जाता है। इसके साथ ही हर घर से आये पकवानों को प्रसाद स्वरूप देवी अंदल को समर्पित किया जाता है। चूंकि यह उत्सव देवी अंदल और भगवान रंगनाथ के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है तो इसे देखने के लिए अनेक श्रद्धालु मंदिर में आते हैं और इन रिवाजों को पूरा करते हुए देखते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि उत्सव के आखिरी दिन (आदिपुरम) को जो अविवाहित लड़की इनकी सच्चे मन से पूजा अर्चना करती हैं, उसका शीघ्र ही विवाह हो जाता है। साथ ही अगर यह उत्सव शुक्रवार को आए तो बहुत ही शुभ और पवित्र मानते हैं। तो यह थी अंदल जयंती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी, आशा है आपको देवी अंदल और भगवान रंगनाथ का आशीष प्राप्त हो।