ताजा समाचार

जौनपुर की अटाला मस्जिद पर विवाद:नक्काशी देखकर होता है मंदिर होने का भ्रम, अटला देवी मंदिर होने का दावा, क्या हैं इतिहासकारों के दावे

वाराणसी की ज्ञानव्यापी मस्जिद का विवाद चर्चा में है। अब जौनपुर की अटाला मस्जिद को किसने बनवाया? वो मंदिर थी या मस्जिद, ऐसे सवाल उठने लगे हैं। सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट करके दावे किए जा रहे हैं कि अटाला मस्जिद के उत्तरी गेट की बालकनी को पर्दे से ढककर दीवारों के पत्थरों को घिसकर चिकना किया किया जा रहा है।

मुख्य राजस्व अधिकारी रजनीश राय मस्जिद पहुंचे। उन्होंने छानबीन करने के बाद कहा कि सोशल मीडिया के दावे सही नहीं मिले हैं। अब पुरातत्व विभाग के अधिकारी और मस्जिद से जुड़े लोगों के साथ मीटिंग की जाएगी।

अब आपको अटाला मस्जिद से जुडे़ दावें पढ़वाते हैं…

गोमती नदी किनारे अटल देवी का घाट है…

ये मस्जिद का मुख्य गेट है। इसकी बनावट बहुत सुंदर है।

सिपाह मोहल्ले में गोमती किनारे स्थित यह मस्जिद पूरे भारतभर में अपनी सुंदरता के लिए फेमस है। जौनपुर के इतिहास पर लिखी त्रिपुरारि भास्कर की पुस्तक जौनपुर का इतिहास में अटाला मस्जिद के बारे में भी लिखा गया। लोगों का विचार है कि यहां पहले अटल देवी का मंदिर था। क्योंकि, अब भी मोहल्ला सिपाह के पास गोमती नदी किनारे अटल देवी का विशाल घाट है। इसका निर्माण कन्नौज के राजा विजयचंद्र ने कराया था। इसकी देखरेख जफराबाद के गहरवार लोग किया करते थे। यह कहा जाता है कि इस मंदिर को गिरा देने का हुक्म फिरोज शाह ने दिया था। लेकिन हिंदुओं ने इसका विरोध किया। जिसके कारण समझौता होने पर उसे उसी प्रकार रहने दिया गया था।

लेकिन कहानी यही नहीं रुकी। 1364 ई. में ख्वाजा कमाल खां ने इसे मस्जिद का रूप देना शुरू किया। 1408 में इसे इब्राहिम शाह ने पूरा किया। इसके विशाल लेखों से पता चलता है कि इसके पत्थर काटने वाले राजगीर हिंदू थे। जिन्होंने इस पर हिंदू शैली के नमूने तराशे है। कहीं-कहीं पर कमल का पुष्प उत्कीर्ण है। इसके बीच के कमरे का घेरा करीब 30 फीट है।

क्या कहते है मुगलकालीन इतिहासकार

मुगलकालीन इतिहास का अबुल फजल ने आईने अकबरी में लिखा है कि मस्जिद की बुनियाद वर्ष 1376 में फिरोजशाह तुगलक ने रखी। वर्ष 1408 में इब्राहिम शाह ने इसे मुकम्मल कराया था। मध्यकालीन भारत में शिक्षा, साहित्य, संस्कृति और धार्मिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र अटाला मस्जिद हुआ करती थी। उस वक्त तमाम उलेमा पलायन कर जौनपुर में शरण ले रहे थे। कारण था कि जौनपुर राज्य का शासक इब्राहिम शाह विद्वानों और उलेमाओं की कदर करता था और उन्हें हर मुमकिन सुविधाएं मुहैया कराता था।

शर्की वास्तुविद ने किया है उल्लेख

शर्की वास्तुविद पर्सी ब्राउन ने अटाला मस्जिद के संबंध में उल्लेख किया है कि इमारत निहायत ही अच्छी कही जा सकती है। यह जौनपुर के कारीगरों की बेहतरीन फनकारी का नमूना है। मस्जिद के अलग-अलग हिस्सों की तामीर में बेहतरीन शिल्पकारी हुई है। मस्जिद का हॉल 30 फीट लंबा और 35 फीट चौड़ा है। इसके ऊपर गुंबद है। इतना ही नहीं बल्कि सुंदर नक्काशी युक्त मेहराबें भी हैं। सदियों से विशाल खंबे मेहराबी दरवाजों का बोध संभाले हुए खड़े हैं।

पोस्ट करने वाले खुद को सुप्रीम कोर्ट के वकील बता रहे

पोस्ट करने वाले अश्वनी खुद वीडियो की पुष्टि नहीं कर रहे हैं।

मंगलवार को अश्वनी उपाध्याय के ट्विटर से पोस्ट की गई। जिसमें मस्जिद की तस्वीर थी। हरे पर्दे लगे थे। कहा गया कि इसकी आड़ में दीवारों की घिसाई कराई जा रही है। आरोप साक्ष्य मिटाने के थे। अश्वनी उपाध्याय ने ट्विटर पर खुद का परिचय सुप्रीम कोर्ट के वकील का दिया है। यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ और डीएम जौनपुर से जांच की मांग की गई थी। इस पोस्ट के सामने आने के बाद मुख्य राजस्व अधिकारी रजनीश मौके पर पड़ताल के लिए पहुंचे थे।

शिक्षाविद् बोले-मस्जिद की मीनारों को देख लगता है यहां मंदिर रहा होगा

मुख्य राजस्व अधिकारी रजनीश राय इस मामले की एक रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं।

इस मामले में शिक्षाविद बृजेश यदुवंशी बताते हैं कि मस्जिद की मीनारों को देखकर ऐसा लगता है कि यहां पर मंदिर रहा होगा। लेकिन, इतिहास की किसी भी किताब में इस बात का जिक्र नहीं है। उन्होंने कहा कि अटाला देवी नाम की किसी भी देवी का जिक्र किसी भी पौराणिक किताब में नहीं है। मस्जिद के निर्माण में जिन पत्थरों का उपयोग हुआ है वो बौद्ध शासनकाल की इमारतों की है। बेलबूटों को देखकर ऐसा लगता है कि यहां मंदिर रहा होगा। उन्होंने बताया की गंगा- जमुनी तहजीब इस शहर में है। लेकिन , कुछ लोगों द्वारा माहौल को बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है।

LEAVE A RESPONSE

Your email address will not be published. Required fields are marked *