कजरी तीज का विशेष महत्व 2022,पूजन व उद्यापन विधि
कजरी तीज का त्योहार आने वाला है और उससे पहले हम वैभव उजाला पर आपके लिए उससे संबंधित संपूर्ण जानकारी लेकर आए हैं। इस लेख में हम कजरी तीज के महत्व के साथ, यह भी बताएंगे कि आपको इस दिन किन-किन बातों का ख़ास ख़्याल रखना चाहिए-
भादो मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को देश के विभिन्न क्षेत्रों में कजरी तीज का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। कजरी तीज को कजली तीज, बड़ी तीज, नीमड़ी तीज और सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष तृतीया तिथि का आरंभ 13 अगस्त को देर रात 12 बजकर 53 मिनट पर होगा और समापन 14 अगस्त को रात में 10 बजकर 35 मिनट पर होगा।
यह त्योहार सभी विवाहित महिलाओं और कुवांरी कन्याओं के लिए महत्वपूर्ण होता है। जहां विवाहित महिलाएं यह व्रत सुखी वैवाहिक जीवन और अपने पति की लंबी आयु की कामना के साथ रखते हैं, वहीं, कुंवारी लड़कियां इस व्रत को मनोवांछित वर की कामना के साथ करती हैं।
इस दिन विधि पूर्वक पार्वती माता का स्वरूप नीमड़ी माता की पूजा-अर्चना की जाती है। करवा चौथ की तरह इस व्रत को निर्जला रखा जाता है और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत को खोला जाता है। इस दिन महिलाएं कजरी तीज के गीत गाती हैं और झूला झूलती हैं।
इस दिन जौ, गेहूं, चने और चावल के सत्तू में घी और मेवा मिलाकर तरह-तरह के पकवान बनाने की भी परंपरा है। इन पकवानों को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है। इस पूजा में विवाहित महिलाएं सज-संवरकर तैयार होती हैं और पूरे विधि-विधान से नीमड़ी माता की पूजा करती हैं।
आपको बता दें, इस व्रत का उद्यापन शादी के बाद महिलाओं के मायके वालों द्वारा करवाया जाता है।
उद्यापन के लिए 16 सातू के पिंड सुहागिनों को दान में दिए जाते हैं और 1 पिंड सांख्या को दान में दिया जाता है। इसके अलावा 4 बड़े पिंड बनाए जाते हैं या लड़की के मायके वालों की तरफ से भेजे जाते हैं, जो कि लड़की, उसकी सास और उसके पति के लिए होते हैं। बचा हुआ एक पिंड मंदिर में दान किया जाता है।
चलिए अब बात करते हैं कि इस दिन किन कार्यों को करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
इस दिन गायों की विशेष रूप से पूजा की जाती है। आटे की सात लोइयां बनाकर उन पर घी, गुड़ रखकर गाय को खिलाने के बाद भोजन किया जाता है।
इसके अलावा इस दिन निर्जला व्रत रखा जाता है, इसमें अन्न और जल ग्रहण नहीं किया जाता है। हालांकि गर्भवती महिलाएं फलाहार ग्रहण कर सकती हैं। साथ ही सुहागिन महिलाएं इस दिन 16 श्रृंगार करें और अपने हाथों में मेहंदी अवश्य लगाएं।
वहीं इस दिन भजन-कीर्तन करें और किसी भी व्यक्ति से कटु शब्दों का प्रयोग न करें।
हम कामना करते हैं कि कजरी तीज व्रत का शुभ फल आपको मिले और आपका वैवाहिक जीवन खुशहाल रहे।
इस विधि से करें कजरी तीज की पूजा
त्योहारों का मौसम चल रहा है और इन बड़े एवं महत्वपूर्ण त्योहारों की कड़ी में अगला त्योहार कजरी तीज मनाया जाएगा। हर घर में इस पावन पर्व की तैयारियां शुरू हो गईं हैं और उसी में आपकी सहायता करने के लिए हम आपके लिए कजरी तीज की विस्तृत पूजा विधि लेकर आए हैं। पूजा को विधि पूर्वक करने के लिए इस लेख को अंत तक अवश्य देखें।
सबसे पहले हम बात करेंगे इस पूजा में इस्तेमाल की जाने वाली संपूर्ण पूजन सामग्री की, जिसे आप पूजा करने से पहले एकत्रित कर लें-
गोबर, काली मिट्टी, रोली, मौली, मेहंदी, अक्षत, हल्दी, गाय का कच्चा दूध, नीम की टहनी, दीप, धूप, भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश जी की प्रतिमा या चित्र, मिष्ठान, आसन, कुमकुम, चंदन, सफेद कागज़, गेहूं के दाने, पानी का लोटा, नींबू, ककड़ी, केला, सेब, सत्तू, अक्षत, सोलह श्रृंगार की सामग्री, आदि।
आपको बता दें, इस पूजा को करने का तरीका काफी खास होता है। इसमें पार्वती माता का स्वरूप मानी जाने वाली नीमड़ी देवी की पूजा की जाती है। तो चलिए जानते हैं कैसे की जाएगी नीमड़ी माता की पूजा।
पूजा में सबसे पहले महत्वपूर्ण होता है विधि पूर्वक भगवान जी का आसन स्थापित करना। इसके लिए आप पूजा स्थल को हल्दी से लीप लें और उस पर अक्षत रखकर एक आसन को स्थापित कर दें। फिर इस आसन पर भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी का चित्र या फिर प्रतिमा स्थापित करें। इसके साथ ही आप पानी का लोटा अवश्य रख लें, जिससे संध्या में चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाएगा।
इसके बाद पूजा में काली मिट्टी और गोबर से बनने वाले तलाब का भी खास महत्व होता है। इसके लिए आप काली मिट्टी और गोबर को एक साथ मिलाकर दीवार के सहारे एक तालाब जैसी आकृति बनाएं। इस तालाब में अब गाय का कच्चा दूध और पानी डालें। तालाब के किनारे नीम की टहनी रोपें साथ ही तालाब को फूलों से सजाएं।
अब तालाब के किनारे एक घी का दीप प्रज्वलित करें और धूप जलाएं फिर नीमड़ी माता को जल व रोली के छींटे दें और उन्हें अक्षत चढ़ाएं।
जैसा कि हम सभी को पता है कि तीज में झूले का विशेष महत्व होता है। कजरी तीज में पूजा स्थल पर मौली की मदद से एक झूला भी बनाया जाता है। चलिए अब जानते हैं कि आपको झूला कैसे बनाना है-
आप झूला सीधे दीवार पर बना सकते हैं या फिर आप दीवार पर एक सफ़ेद कागज़ चिपका दें और उस पर मौली को झूले के आकार में चिपका दें। मौली को चिपकाने के लिए आप दोनों तरफ मेहंदी का प्रयोग कर सकते हैं।
इसके बाद दीवार या कागज़ पर रोली की मदद से स्वास्तिक बनाएं। फिर इसमें मेहंदी, रोली और काजल की 13-13 बिंदियां अंगुली से उस पर लगा दें। ध्यान रहें मेहंदी और रोली की बिंदी अनामिका अंगुली से लगाएं और काजल की बिंदी तर्जनी अंगुली से लगाएं।
इसके बाद सभी प्रतिमाओं और नीम की पत्तियों को कुमकुम का तिलक लगाना है, साथ ही जो जल का लोटा आपने रखा था उसके मुख पर भी कुमकुम से 13 बिंदियां लगानी हैं।
इसके अलावा कजरी तीज में बेसन सातू की भी पूजा करने का विधान है। तो आप भी सत्तू का एक बड़ा लड्डू बनाएं और उस पर एक सिक्का, सुपारी और मौली चढ़ाएं।
इसके पश्चात आपके द्वारा बनाया गया भोग नीमड़ी माता को अर्पित करें, साथ में उन्हें सोलह श्रृंगार की सामग्री भी चढ़ाएं । पूजा करते वक्त नीम की टहनी पर रक्षा सूत्र अवश्य बांधें।
फिर पूजा स्थल पर बने तालाब के किनारे पर रखे दीपक के उजाले में नींबू, ककड़ी, नीम की डाली, नाक की नथ, साड़ी का पल्ला आदि की परछाई देखें। कहा जाता है कि ऐसा करना अत्यंत शुभ होता है। इसके अलावा इस पूजा में व्रत कथा सुनना बिल्कुल भी न भूलें। इसलिए कथा सुनने या पढ़ने के बाद अंत में मॉं की आरती उतारें।
वहीं कजरी तीज पर संध्या के समय चंद्रमा को अर्घ्य देने की भी परंपरा है। इसके लिए चंद्रमा को जल के छींटे देकर रोली, मौली, अक्षत चढ़ाएं और फिर भोग अर्पित करें। अब गेहूं के दानों को हाथ में लेकर जल से अर्घ्य दें और एक ही जगह खड़े होकर चार बार घूमें। इसी के साथ आपकी पूजा संपूर्ण हो जाएगी।
हम आशा करते हैं कि आपकी पूजा फलीभूत और आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों।
जानिए कैसे करें कजरी तीज व्रत का उद्यापन
त्योहारों के मौसम में कजरी तीज पर्व की रौनक हर तरफ देखी जा सकती है। कजरी तीज में अन्य चीज़ों के बीच पूजा के बाद उद्यापन करना काफी महत्वपूर्ण माना गया है। आज हम आपके लिए उद्यापन की विधि लेकर आए हैं, इसलिए आप इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।
कजरी तीज व्रत का उद्यापन शादी के बाद लड़कियों को पीहर यानी मायके द्वारा विधि पूर्वक करवाया जाता है। इसके लिए लड़की के मायके से पूर्ण उद्यापन सामग्री उसके ससुराल भेजी जाती है। व्रत का उद्यापन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है,क्योंकि इसके बाद ही व्रत को सम्पूर्ण माना जाता है।
चलिए अब जानते हैं कि उद्यापन के लिए किन-किन चीजों की आवश्यकता होती है।
चार बड़े सातू के पिंड
17 सवा-सवा पाव के पिंड।
17 स्टील की कटोरी
आपकी सास के लिए कपड़े, श्रृंगार की सामग्री और श्रद्धा के अनुसार दक्षिणा रखें।
सांख्या के लिए वस्त्र, तौलिया, नारियल और दक्षिणा।
अब चलिए जानते हैं कि उद्यापन की विधि क्या है-
आप 17 सातूओं को अलग-अलग कटोरी में रख दें और सब पर कुमकुम का टीका लगाएं, उसमें सुपारी और सिक्का रख दें। इनमें से आप 16 पिंड सुहागिनों को दान करें, बेहतर रहेगा अगर आप इन्हें उपवास रखने वाली सुहागिनों को दान करें, और एक पिंड, कपड़ों, नारियल और दक्षिणा के साथ सांख्या को दान करें। आपको बता दें सांख्या आप अपने देवर को बना सकते हैं, अपने जेठ के बेटे को बना सकते हैं या अपनी ननद के बेटे को भी बना सकते हैं।
उद्यापन के समय चार बड़े पिंडों में से एक सास को कटोरी में रखकर दक्षिणा, कपड़े और श्रृंगार की सामग्री के साथ दान करना होता है और फिर उनके चरण छूकर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। अगर आपकी सास नहीं हैं तो आप उनके स्थान पर ननद या किसी बुजुर्ग महिला को भी दे सकती हैं। बचे हुए 3 बड़े पिंडों में से एक पति के लिए होता है, एक मंदिर के लिए और एक खुद के लिए होता है, जिसे व्रत के पारण के समय खाया जाता है।
इसके अलावा लड़की के मायके से उसके लिए, उसके पति के लिए और ससुराल के अन्य लोगों के लिए भी कपड़े भेजे जाते हैं। कुछ लोग कपड़ों के साथ सोने और चांदी के आभूषण भी भेजते हैं। इस उद्यापन विधि की पूजा के अंत में कजरी माता से सभी भूल चूक के लिए माफी मांगी जाती है।
कजरी तीज की व्रत कथा
कजरी तीज सभी सुहागिनों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व होता है, लेकिन क्या आप इससे जुड़ी हुई कथा के बारे में जानते हैं? आज हम आपको वही कथा सुनाने जा रहे हैं, इसलिए इस लेख को अंत तक अवश्य देखें-
बहुत समय पहले, किसी गांव में एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ निवास किया करता था। ब्राह्मण अत्यंत निर्धन था और उन दोनों के लिए दो वक्त की रोटी जुटा पाना भी काफी मुश्किल होता था। इस गरीबी के बीच जैसे-तैसे दोनों अपना गुज़र-बसर कर रहे थे। ब्राह्मण की पत्नी भगवान की भक्ति में बहुत विश्वास रखती थी। इसलिए भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को उसने अपने मन में कजरी तीज का व्रत रखने का संकल्प ले लिया।
उसने अपने पति को बताया कि वह कजरी तीज पर व्रत का पालन करना चाहती हैं। जिसके लिए उसे सातू की आवश्यकता होगी। ब्राह्मण की पत्नी ने आगे कहा कि, आप मेरे लिए कहीं से सातू ले आएं, ताकि मेरा व्रत संपूर्ण हो सके। पत्नी की बात सुनकर ब्राह्मण काफी चिंतित हो गया क्योंकि उसके पास सातू खरीदने के लिए धन नहीं था। लेकिन इसके बावजूद वह अपनी पत्नी की इच्छा को पूरा करना चाहता था, इसलिए उसने किसी तरह सातू का प्रबंध करने का निश्चय किया।
इसके बाद ब्राह्मण साहूकार की दुकान पर पहुंच गया और वहां उसने देखा कि साहूकार सो रहा है। ऐसे में ब्राह्मण दुकान में गया और वहां पर उसने चने की दाल, घी और शक्कर को सवा किलो तौल लिया और उसे चक्की में पीसकर सातू बना लिया। जब वह सातू लेकर वहां से जाने लगा तब साहूकार की नींद खुल गई और वह चोर-चोर चिल्लाने लगा।
यह सुनकर ब्राह्मण ने उसे बताया कि “मैं चोर नहीं हूँ। मेरी पत्नी ने आज कजरी तीज का व्रत रखा है, जिसके लिए उसे सातू की आवश्यकता थी, इसलिए मैं सिर्फ यहां से सवा किलो का सातू बना कर ले जा रहा था। इसके अलावा मैंने तुम्हारी दुकान से और कुछ भी नहीं लिया है।”
ब्राह्मण की बात सुनकर साहूकार ने उसकी तलाशी ली, जिसमें उसे ब्राह्मण के पास सातू के अलावा कुछ नहीं मिला। यह देखकर साहूकार को बहुत पश्चाताप हुआ और उसने ब्राह्मण से माफी मांगते हुए कहा कि आज से मैं तुम्हारी पत्नी को अपनी बहन मानता हूँ। इसके बाद साहूकार ने ब्राह्मण को धन और घर का कुछ सामान देकर विदा कर दिया।
इस प्रकार भगवान शंकर और माता पार्वती के आशीष से ब्राह्मण की पत्नी का व्रत पूर्ण हुआ। हम आशा करते हैं, भगवान शंकर और माता पार्वती इसी प्रकार आप पर भी अपनी कृपा बनाए रखें, इसी के साथ यह कथा समाप्त होती है।