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परिश्रम का फल मीठा होता है ,क्या आधुनिक परिवेश इसकी इजाजत देता है ?

***परिश्रम का फल मीठा होता है ,क्या आधुनिक
परिवेश इसकी इजाजत देता है ?

संतोष पांडेय ,स्वदेशी चेतना मंच

मैं 10 वी कक्षा में था ,उन दिनों अंग्रेजी के टेक्स्टबुक में एक पाठ हुआ करता था, “the ant and ,the grasshopper इसके लेखक थे w.s. maugham लेखक महोदय ने अपने इस निबंध में एक पंक्ति लिखी थी {,”industry never goes unrewarded” }परिश्रम कभी ब्यर्थ नही जाता । इस उक्ति को प्रमाणित करने के लिए वे पहला उदाहरण लेते है – चींटी और टिड्डा का ।
चींटी गर्मियों के मौसम में अपने कठिन परिश्रम द्वारा
अनाज जमा करती है , जिससे जाड़े के मौसम में वो
वो अपना भरण पोषण कर सके । चीटियां को कार्य करता देख टिड्डा हंसता है , गाता है ,नाचता है , फिर भो चीटियां उसको भविष्य के प्रति अगाह करती है वो कहती है ,अभी जाकर कुछ अनाज जमा कर लो
नही तो जाड़े के दिनों में भूखो मरोगे । टिड्डा इस बात को अनसुना कर अपनी मस्ती में खो जाता है । जाड़ा दस्तक देता है ।हर तरफ बर्फ की चादर हरे भरे मैदानों को निगल जाती है । अब टिड्डे के पास खाने को कुछ नही रहता और वो भूखो मरने लगता है । इसको चींटी की कही बात याद आती है ,यदि मैंने उस समय इसकी बात मान ली होती,और समय पर परिश्रम करता तो आज मेरा ये हाल नही होता । w.s.Maugham महोदय ने तो यहां मान लिया कि परिश्रम का फल मीठा होता है ,पर जीवन के कटु अनुभवों ने उनके इस सोच को संशय में बदल देता है । वो आगे एक और उदाहरण लेते है दो सगे भाइयों – जॉर्ज रैमजे और टॉम रैमजे का । जॉर्ज रैमजे पेशे से एक मेहनत कश वकील , एक ईमानदार और विश्वस्त चेहरा जिसकी समाज मे बड़ी इज्जत थी । छोटा भाई टॉम उतना ही बड़ा कामचोर , जिसके उट-पटांग हरकतों की वजह से जॉर्ज की बड़ी बदनामी होती रहती थी । टॉम रैमजे एक व्यभिचारी व्यक्ति था जो लोगो से पैसे उधार लेकर ऐश किया करता था । चूंकि जॉर्ज बड़ा था इसलिए पारिवारिक इज्जत की खातिर वो टॉम के कर्ज को भरता रहता । लेकिन हर चीज की एक सीमा होती है । जोर्ज रैमजे ,टॉम की कारगुजारियों से अजीज आकर उसे घर से निकाल देता है । अब टॉम स्वतंत्र था ,उसको कोई रोकने वाला न था ।कुछ दिन मस्ती की लेकिन जब भूखो मरने की बारी आई तो उसने एक युक्ति बनाई । उसके शहर में एक मालदार बिधवा रहती थी ,उसके पास कोई न था । टॉम रैमजे ने उस बिधवा से शादी कर ली ।उसको ये पता था ये कुछ दिनों की मेहमान है उसके बाद इसकी सारी दौलत मेरी होगी । प्रकृति भी कभी – कभी बुरो का ही साथ देती है । कुछ माह बाद उस बिधवा की मृत्यु हो गयी और टॉम रैमजे बिना किसी मेहनत के अमीर बन गया । सृष्टि के नैतिक नियम के विरुद्ध टॉम का अमीर हो जाना ,लेखक महोदय को कही न कही खटकता है और वह प्रश्न पूछता है कि यदि परिश्रम कभी ब्यर्थ नही जाता तो जॉर्ज रैमजे जो कि एक ईमानदार मेहनतकश, इंसान है ,एक झोपड़े में रहता है ,वही टॉम कामचोर ,अनैतिक ब्यक्ति आज हवेली में रहता है । क्या यही प्रकृति का न्याय है ?
हमारे जीवन मे किसी के साथ घटित कोई वाकयात एक उदाहरण की तरह हमारे मानस पटल पर अंकित हो जाते है । जॉर्ज रैमजे जब अपने भाई की उपलब्धियों के बारे में सोचता है तो वह हंसने लगता है
कि आज समाज, मेहनत के अंतिम परिणाम की जानकारी रखता है । कोई किस तरह से सफल हुआ ,इस बात से अब किसी को कोई फर्क नही पड़ता । यद्यपि ये कहानी जीवन को उसके स्याह पक्ष की वकालत करती है लेकिन यहां पर कहानी जीवन मे हो रहे अनैतिक बदलाव की ओर इशारा भी करती है ।
अब इस कहानी के परिणाम का थोड़ा आधुनिक विश्लेषण करते है । ज्यादा दिन अभी नही बीते है ,कुछ बर्ष पहले तक ,समाज ब्यक्तित्व की कद्र करता था न कि ब्यक्ति का । लेकिन आज बैभव की लोभी आंखे मनुष्य की कीमत नही करती बल्कि उसके धनबल की कीमत करती है । आज समाज मे सफल लोगो की पूछ है ।इस बात से कोई हर्ज नही है कि उसने सफलता कैसे प्राप्त की है । कठिन परिश्रम ,सही रास्ते यदि आपकी योजना को मंजिल तक नही ले जाते तो आप निश्चय ही हंसी के पात्र बनते हो ।लोग अब ये नही देखते कि सफलता कैसे दुर्गम रास्तो और मगरमच्छो के बीच से गुजरती है ।
इलाहाबाद में न केवल उत्तर प्रदेश के कोने – कोने से बल्कि अन्य प्रदेश से बच्चे आकर सरकारी नौकरी के लिए अपनी भाग्य आजमाइस करते है लेकिन जिस लाटरी का विजेता पहले से ही चुन लिया गया हो उसमे यदि औरो ने लॉटरी की टिकेट खरीदी है तो वे केवल अपना समय जाया कर रहे है ।
नौकरी अब तपस्या रत छत्रों को नही मिलती बल्कि उनको मिलती है जिनके पास पैसे का वेट है या उनको मिलती है जिनके राजनेताओ से गठजोड़ है । आज परिश्रम का फल नही मिलता बल्कि चाटुकारी का फल मिलता है । आज ईमानदारी सबसे अच्छी नीति नही मानी जाती बल्कि इसके बारे में यहां तक कह जाता है कि “ईमानदार मनुष्य तब तक ईमानदार रहता है जब तक उसका मोल लगाने वाला न मिल गया हो ” । कुछ वर्षों पहले ही कही पर लिखा मैने पढ़ा था ,”honesty is not dignity but it is lack of opportunity ” ईमानदारी सदाचरण नही है बल्कि अवसर की कमी है ।जिसको जब तक अवसर नही मिलता उसको लोग ईमानदार कहते है ।
दुनियां में आज जब कुछ नया होता है ,कुछ अजब और अलग होता है तो कम से कम वो अपने देश मे
नही होता है । नोबेल पुरस्कारों की जब भी घोषणा होती है तो उसमें भारत देश का नाम नही होता लेकिन भारतवंशियों का नाम जुड़ा होता है । ऐसा क्यों होता है कि लोग वही होते है देश बदलने से क्या उनकी प्रतिभा बदल जाती है ? नही ।, वो देश जो दुनिया मे बहुत आगे है ,जिनके विकास की गति बहुत तेज है ,वो इसलिए आगे है क्यो कि वो विद्वानों का सम्मान करना जानते है । देश विद्वानों को देशहित में काम करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र एवं बेहतरीन वातावरण तैयार करते है जिससे उनके ज्ञान का समुचित उपयोग कर सके ।
हमारे यहां आरक्षण ने प्रतिभाओ का गला घोंट दिया ,आरक्षण के दलदल ने राजनीति की सडांध पैदा की ,जिसकी बदबू से ज्ञान और ज्ञानीजन सुखते चले गये । आज की स्थिति ये है कि हमारे निकम्मे हुक्मरानों ने एक विशाल लोकतंत्र की योग्यताओ का प्रयोग किये बिना उनको देश के लिए बोझ बना दिया है । आज ज्ञानी जनने वाली धरती बांझ हो गयी है । जिस धरती के शून्य देने से दुनियां ने विकास के पथ पर दो कदम चलना सीखा वो धरती यदि आज कच्छप चाल चल रही है तो इसके लिए हमारी निकम्मी राजनीति और नालायक नेता जिम्मेवार है ।
प्रिय पाठक गण आज हम रोड टैक्स देते है लेकिन टूटी हुई सड़क पर चलते है और आये दिन दुर्घटना का शिकार होते है जिसके दवा में हमारी जमा पूंजी भी खत्म हो जाती है । तो क्या हमें खराब रोड सेवा पर टैक्स चुकाना चाहिए ? कतई नही ।
हमारे साथ जब कोई अन्याय होता है तब हम पुलिस के पास जाते है । पुलिस हमारी सहायता नही करती बल्कि और परेशान करती है ,तो क्या वर्तमान परिपेक्ष में थानों की कोई प्रासंगिकता है ? क्या इस सेवा में और सुधार और जिम्मेदारी की आवश्यकता नही है ?
आप बिजली का बिल भरते है लेकिन आजकल बिजली के सड़े तारों की वजह से रोज बिजली गायब रहती है ,कही न कही खराबी रोज रहती है । ट्रांसफॉर्मर यदि फूंक गया तो फ़ोन करने पर उसकी अनुपलब्धता बताई जाती है ।वही पर दलालो के माध्यम से पैसे देकर ट्रांसफॉर्मर उपलब्ध हो जाता है । ऐसा क्यों । जब हम बिल देने के बाद भी पैसे का भुगतान करे तो बिल का भुगतान क्यो ? आज देश मे अनगिनत समस्याएं है जिनसे लोग जूझ रहे है ।
जब प्रतिभाये संघर्ष करके दम तोड़ देती है और कमतर लोग जिम्मेदार ओहदों पर बिराजमान होते है तो ऐसी समस्याएं आम होती है । संघर्ष करके कोई साधारण व्यक्ति ,व्यक्तित्व को प्राप्त करता है ।इस दौरान वह दुनिया के तौर – तरीकों से भिज्ञ होता है और लोगो के दर्द से वाकिफ भी होता है । अपने इसी अनुभव का इस्तेमाल करके दुनिया को सुंदर बनाता है । लेकिन जब परिश्रम पुरस्कार नही पाता तब समाज में शिकारियो की संख्या बढ़ जाती है और मानवता रोज शिकार होती है ।
दोस्तो याद रखिये —
एक कुशल तैराक वो होता है जो धारा के विपरीत
तैरना जनता है ।धारा के साथ तो कोई भी तैर
सकता है । ये जरूरी नही है सूरज रोज चमके ,हवाये नित यात्रा की दिशा में गतिमान हो ,पर हमारी जीवन का स्पंदन अनवरत चलता रहे ,ये जीवटता है और यही जीवन है ।
क्या हार में ,क्या जीत में ,
किंचित नही भयभीत मैं ।
संघर्ष पथ पर जो मिले,
यह भी सही ,वह भी सही ।।
वरदान मांगूगा नही ।।
शिवमंगल सिंह “सुमन ”

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