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बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँधा है

****बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँधा है ***
संतोष पांडेय , स्वदेशी चेतना मंच

बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा है
प्यार के दो तार से संसार बाँधा है …….
भारत त्योहारों का देश है । प्रकृति की अनुग्रह प्राप्त ये धरती संसार मे विलक्षण और न्यारी है । जीवन को नीरस होने से बचाने और उसमे नवीनता का संचार करने हेतु हमारे ऋषि – मनस्वियों ने यहां प्रत्येक महीने किसी न किसी उत्सव का विधान किया । रक्षा बंधन उन उत्सवों में से एक है । सावन महीने के पूर्णिमा को मनाए जाने वाला यह उत्सव भाई -बहन के विश्वास का पर्व है । यद्यपि रक्षा सूत्र कच्चे धागे से बना होता है ,तथापि भाई की कलाई ,बहन का विश्वास ;एक अटूट बंधन बाँधता है । इस पर्व में बहन अपने भैया से अनुग्रह चाहती है और भाई अपनी बहन से वादा करता है कि ,उसके सुख ,दुख ,धूप , छाव में उसका सदैव साथ देगा । प्रकाश बनकर उसके जीवन को आलोकित करेगा और छाया बनकर उसको सुकून के पल देगा ।
भारत के मिट्टी की अपनी गौरवशाली परंपरा रही है ।राजा राम के न्याय और कृष्ण के प्रेम की यह धरती अनादि काल से यह संदेश दे रही है कि हम संसार के और देशो से न्यारे है , हमारी परंपराये हमारे प्राण है और जीवन जीने का ढंग बिल्कुल अलग और अद्वितीय ; हमारा जीवन नदी की तरह स्वच्छन्द एवं अविरल और हमारे रिश्ते पर्वत की तरह अडिग और पवन की तरह सर्वव्यापी ।
हमारे देश मे जितने भी त्योहार मनाये जाते है उनकी पौराणिक मान्यता तो है ही ;उनको मनाने के पीछे कुछ लौकिक कथाएं भी है । रक्षा – बंधन के पीछे पौराणिक कथा ये है कि —दानव राज शिबि ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर लिया । देवताओ के राजा देवेंद्र देवताओ की रक्षा हेतु भगवान विष्णु के पास गये और रक्षा की गुहार लगाई । भगवान विष्णु ने वामन का रूप धर राजा शिबि से तीन पग धरती दान में मांगा। राजा शिबि बहुत बड़े दानी थे ,उनके गुरु शुक्राचार्य ने श्रीहरि को पहचान लिया और उनको वचन न देने के लिए बाध्य किया ;पर राजा शिबि ने कहा -यदि आज भगवान स्वयं याचक बनकर मेरे दानशीलता की परीक्षा लेने आये है तो भी ;मैं पीछे नही हटूंगा ,और तीन पग भूमि दान कर दिए । वामन रूपी नारायण ने एक पग में सारी धरती नाम ली , और दूसरे पग में सारा ब्रह्मांड अब तीसरे पग के लिए महादानी शिबि के पास कोई स्थान शेष नही था ।अतः उसने वामन के सामने अपने शीश को रख दिया । वामन भगवान ने अपने पैर के प्रहार से उसे पाताल पहुंचा दिया ।इस प्रकार देवताओ की रक्षा तो हो गई; ‘परंतु शिबि ने भगवान नारायण से ये वरदान प्राप्त कर लिया था कि वे उनके साथ पाताल लोक में ही निवास करेंगे । श्री हरि अपने वचन की रक्षा हेतु पाताल लोक में रहने लगे । इससे महालक्ष्मी ब्यग्र हो उठी और कोई उपाय न देख ,वो स्वयं राजा शिबि के पास पाताल लोक पहुँच गयी । स्वयं को बहन संबोधित कर शिबि से वचन लेती है कि, वे नारायण को अपने वचनों से मुक्त कर दे ,और उनको जाने की अनुमति दे । महाबली शिबि ने बहन को दिया गया वचन पूरा किया , और नारायण को उनके साथ जाने दिया । मान्यता है कि जिस दिन माँ मलक्ष्मी पाताल लोक गयी थी उस दिन सावन की पूर्णिमा थी । तभी से उस दिन को रक्षा –बंधन के पर्व के रूप में मनाया जाता है ।
हमारे देश का एक नाम ‘आर्यावर्त ‘ भी है । आर्य का अर्थ है उच्च ,परिष्कृत ,महान । हमारा रूप रंग ,वेश भूषा चाहे दुनिया की नजर म जैसा भीें है पर हमारे विचार उच्च आदर्शो से सने ,क्रियाकलाप ;सहृदयता से परिपुर्ण और वचन बद्धता ;काल की तरह अडिग और हमारा सुख — सर्वे भवन्तु सुखिनः ।
राजा शिबि को ये ज्ञात था कि स्वयं नारायण उनका सर्वस्व हरण करने के लिए उनसे वचन मांग रहे है, फिर भी उस महादानी ने ‘प्राण और वचन ‘में ;वचन पालन को तरजीह दिया । हमारी धरती के आंगन में ऐसे अनेकों बाँकुरे हुए जिन्होंने कुछ ऐसा कर दिया जो प्रथा बन गयी और उनकी क्रियाओ ने उत्सव का चोला ओढ़ लिया ।
रक्षा – बंधन का त्योहार मजहब की रूढ़ियों से परे है । आधुनिक इतिहास यह कहता कि मेवाड़ की रानी कर्णावती ने गुजरात के शासक- बहादुर शाह से रक्षा हेतु को हुमायूँ को एक पत्र और राखी भेजी थी । पत्र में स्वयं को रानी नही वरन एक बहन संबोधित कर अपने भाई से अपनी रक्षा की प्रार्थना की । हुमायूँ ने बदले में बहन के आबरू और उसके राज्य की रक्षा की ।
दुनिया के समस्त रिश्तों में ‘मानवता का रिश्ता ‘सबसे
प्रगाढ़ है । ऐसा यदि न होता तो एक मुस्लिम -किसी हिन्दू बिधवा की रक्षा क्यो करता ? वो भी :इतिहास के ऐसे काल मे ! जब जबरन धर्मांतरण आम बात थी । *****लोकाचार में कभी कुछ लोग ये कहते सुने जाते है कि मेरी कोई सगी बहन नही है जो मुझे राखी बांधे । इतिहास के किसी भी पन्ने में आप* यही* लिखा हुआ पाएंगे कि;** रक्षा बांधने वाला हाथ **और बधवाने वाली कलाई **;में खून के रिश्ते नही* ;प्रेम के रिश्ते थे । रिश्ते दूरियों की दीवार ,धर्म की रूढ़ियाँ ,खून के सबंधो के मोहताज नही होते ,बल्कि प्रेम के मोहताज अवश्य होते है । अतः अब से प्रण लीजिये ; न कोई अपना और ना ही कोई पराया , सारी बसुधा अपना परिवार और सारा आकाश अपना ठिकाना ।
लड़कियां ईश्वर की अनमोल रचना है ।किसी के घर मे भले ही लड़के भरे पड़े हो पर घर का आंगन इनकी चहक से ही गुंजायमान होता है। लड़को का माँ-बाप के प्रति प्रेम जहां बुढापे तक घटता जाता है , वही लडकिया तब ध्यान देना शुरू करती है । गाँव की शादियों में ;जिसके घर लड़कियों की संख्या कम होती है; उसकी शादी बदरंग सी दिखती है।लड़कियां बागों की कोयल सी होती है ,बिना उनके चहक से चमन अधूरा सा लगता है । हमारे समाज को इनकी शिक्षा ,सुरक्षा ,सम्मान के प्रति और जवाब देह बनना पड़ेगा ।
सारे तीज ,त्योहार ,शादी – विवाह में लड़कियां ही केंद्र बिंदु होती है । सारे उत्सव उन्ही के है और उनके बल से है । सम्पूर्ण भादव मास लड़कियों के नाम है । राखी आयी है ,दो दिनो बाद कजरी ,उसके बाद तीज ,सारा महीना ईश्वर की अद्भुत कृति लड़कियों को समर्पित है।
***धरती के श्रृंगार का अद्भुत महीना सावन के उत्तरायण में पड़ने वाले भाई- बहन के पर्व की सभी गाँव एवं नगरवासियो को हार्दिक शुभकामनाऐ ,एवं बहनो को के लिए एक संदेश ……
—आप किसी भी घर की आन ,बान और शान है । आपके कद से परिवार का कद है ।आप परिवार के ताने बाने को संभालने वाली मुख्य ध्वजा वाहक है ।आपका जीवन खुशियो से भरा रहे —रक्षा बंधन ,जगरन ,कजरी ,तीज की ढेरो शुभकामनाये ।
याद रखिये —–
मुंशी प्रेम चंद जी ने कहा था ” “”अनुराग – रूप और धन से नही होता बल्कि अनुराग – अनुराग से होता है “”

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काल करे 7039403464

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