घर में लौकी लगाइए,स्वस्थ रहिए और सब्जी में आत्म निर्भर बनिये
*घर में लौकी लगाइए,*
*स्वस्थ रहिए और सब्जी में आत्म निर्भर बनिय…
लौकी एक बहुत उपयोगी सब्ज़ी है।
लौकी का पौधा एक लता होती है जिसपर लौकियाँ फलती हैं।
जब फल बढ़ रहा होता है तो इसे सब्ज़ी के रूप में पकाया व खाया जाता है।
इस अवस्था में इसका छिलका हरे रंग का और अंदर का गूदा श्वेत होता है।
लौकी को सब्जी के अलावा रायता, हलवा और विविध प्रकार की मिठाईयाँ बनाने में प्रयोग किया जाता है।
कई जगहों पर लौकी को घीया के नाम से भी जाना जाता है।
लौकी की सबसे अच्छी बात ये है कि ये बेहद आसानी से मिल जाती है।
मैंने घर में सब्जी लगाने के कुछ नवाचार किए हैं।
सब्जियाँ सबसे जल्दी परिणाम देने वाली उत्पाद हैं।
आजकल गाँवों में जहाँ पर्याप्त लौकी लगी रहती है वहाँ भी लोग लौकी की सब्जी न खाकर बाजार की पेस्टिसाइड युक्त बेसौम की सब्जी खाते हैं जो हमारी जेब भी खाली करती हैं और स्वास्थ्य भी खराब करती हैं।
*आइये आपको बताते हैं लौकी का महत्व और इसके बारे में पूर्ण जानकारी।*
*लौकी के विभिन्न नाम:*
लौकी को अंग्रेज़ी में Calabash, bottle gourd, white-flowered gourd, long melon, birdhouse gourd आदि नामों से जानते हैं ।
लौकी का वैज्ञानिक नाम लेजीनेरिया सिसेरेरिया (Lagenaria siceraria) है।
लौकी को लउका, कद्दू, दूधी या घीया भी कहा जाता है।
*लौकी मुख्यतः दो प्रकार की होती है-*
लम्बी बेलनाकार लौकी तथा गोल लौकी।
*लौकी का वितरण:*
लौकी का उत्पत्ति स्थान अफ्रीका माना जाता है।
लौकी से मानव भोजन का नाता बहुत पुराना है।
मेक्सिको की गुफाओं (ईसा से 7000 से 5500 वर्ष पूर्व) व मिश्र के पुराने पिरामिडो (ईसा से 3500 से 3300 वर्ष पूर्व) इसकी उपस्थिति इसके प्राचीनतम होने की सबूत दोहराती है।
लौकी भारत में मालावार तट और देहरादून के नम जंगलो से यह आज भी जंगली रूप में पाई जाती है।
यह श्रीलंका, भारत, इंडोनेशिया, मलेसिया, फिलिपाइन्स, चीन, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका आदि देशों में लगाई जाती है।
*लौकी के लाभ:*
हमारे देश मे सब्ज़ी के रुप में खाई जाने वाली लौकी हमारे शरीर के कई रोगों को दूर करने में सहायक होती है।
यह बेल पर पैदा होती है और कुछ ही समय में काफी बड़ी हो जाती है।
वास्तव में यह एक औषधि है और इसका उपयोग हजारों रोगियों पर सलाद के रूप में अथवा रस निकालकर या सब्ज़ी के रुप में एक लंबे समय से किया जाता रहा है।
लौकी को कच्चा भी खाया जाता है, यह पेट साफ करने में भी बड़ा लाभदायक साबित होती है।
लंबी तथा गोल दोनों प्रकार की लौकी वीर्यवर्धक, पित्त तथा कफनाशक और धातु को पुष्ट करने वाली होती है।
अंग्रेजी में बाटल गार्ड के नाम से प्रचलित इसके बारे में कहा जाता है, कि मनुष्य द्वारा सबसे पहले उगाई गयी सब्ज़ी लौकी ही थी।
*प्रोटीन, फाइबर, मिनरल, कार्बोहाइड्रेट से भरपूर इसके औषधीय गुणों पर एक नज़र डालते हैं-*
(1). इसे उबाल कर कम मसालों के साथ सब्ज़ी बनाकर खाने पर यह मूत्रल (डायूरेटीक), तनावमुक्त करनेवाली (सेडेटिव) और पित्त को बाहर निकालनेवाली औषधि है।
(2).हृदय रोग में, एक कप लौकी के रस में थोडी सी काली मिर्च और पुदीना डालकर पीने से हृदय रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
3. इसका जूस निकालकर नींबू के रस में मिलाकर एक गिलास की मात्रा में सुबह सुबह पीने से यह प्राकृतिक एल्कलाएजर का काम करता है ,और कैसी भी पेशाब की जलन चंद पलों में ठीक हो जाती है।
4. हैजा होने पर 25 एमएल लौकी के रस में आधा नींबू का रस मिलाकर धीरे-धीरे पिएं। इससे मूत्र बहुत आता है।
5. अगर डायरिया के मरीज को केवल लौकी का जूस हल्के नमक और चीनी के साथ मिलकर पिला दिया जाय तो यह प्राकृतिक जीवन रक्षक घोल बन जाता है।
6. लौकी में श्रेष्ठ किस्म का पोटैशियम प्रचुर मात्रा में मिलता है, जिसकी वजह से यह गुर्दे के रोगों में बहुत उपयोगी है और इससे पेशाब खुलकर आता है।
7. लौकी के रस को सीसम के तेल के साथ मिलाकर तलवों पर हल्की मालिश सुखपूर्वक नींद लाती है। 8.लौकी का रस मिर्गी और अन्य तंत्रिका तंत्र से सम्बंधित बीमारियों में भी फायदेमंद है।
9. अगर आप एसिडीटी,पेट क़ी बीमारियों एवं अल्सर से हों परेशान, तो न घबराएं बस लौकी का रस है इसका समाधान।
10. केवल पर्याप्त मात्रा में लौकी क़ी सब्जी का सेवन पुराने से पुराने कब्ज को भी दूर कर देता है।
11. लौकी के बीज का तेल कोलेस्ट्रोल को कम करता है तथा हृदय को शक्ति देता है। यह रक्त की नाड़ियों को भी स्वस्थ बनाता है। लौकी का उपयोग आंतों की कमजोरी, कब्ज, पीलिया, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह, शरीर में जलन या मानसिक उत्तेजना आदि में बहुत उपयोगी है।
12. लौकी का रस मिर्गी और अन्य तंत्रिका तंत्र से सम्बंधित बीमारियों में भी फायदेमंद है। जूस निकालने से पहले लौकी का एक छोटा टुकड़ा काटकर उसे चख लेना चाहिए। अगर वह कड़वा हो तो लौकी का किसी भी रूप में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
13. लौकी खाने से पेट ठीक रहता है। ये जल्दी पच जाती है। पर क्या आप जानते हैं कि लौकी की सब्जी जितने ही पोषक तत्व उसके छिलके में भी होते हैं। जी हां, वही छिलके जिसे आप तुरंत ही फेंक देते हैं। अगर इन छिलकों का सही तरीके से प्रयोग किया जाए तो पेट से लेकर सौंदर्य निखारने तक में ये मददगार साबित होते हैं।
14. वजन कम करने में मददगार – कुछ ही लोगों को ये पता होगा कि लौकी खाने से वजन कम होता है। आपको शायद इस बात पर यकीन न हो लेकिन किसी भी दूसरी चीज की तुलना में लौकी ज्यादा तेजी से वजन कम करती है। आप चाहें तो लौकी का जूस नियमित रूप से पी सकते हैं। इसके अलावा आप चाहें तो इसे उबालकर, नमक डालकर भी इस्तेमाल मे में ला सकते हैं।
15. लौकी में नेचुरल वॉटर होता है। ऐसे में इसके नियमित इस्तेमाल से प्राकृतिक रूप से चेहरे की रंगत निखरती है। आप चाहें तो इसके जूस का सेवन कर सकते हैं या या फिर उसकी कुछ मात्रा हथेली में लेकर चेहरे पर मसाज कर सकते हैं। इसके अलावा लौकी की एक स्लाइस को काटकर चेहरे पर मसाज करने से भी चेहरे पर निखार आता है।
16. मधुमेह के रोगियों के लिए लौकी किसी वरदान से कम नहीं है। प्रतिदिन सुबह उठकर खाली पेट लौकी का जूस पीना मधुमेह के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
17. अगर आपको पाचन क्रिया से जुड़ी कोई समस्या है तो लौकी का जूस आपके लिए बेहतरीन उपाय है। लौकी का जूस काफी हल्का होता है और इसमें कई ऐसे तत्व होते हैं जो कब्ज और गैस की समस्या में राहत देने का काम करते हैं।
18. लौकी का इस्तेमाल करना दिल के लिए बेहद फायदेमंद होता है। इसके इस्तेमाल से हानिकारक कोलेस्ट्रॉल कम हो जाता है। कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक होने से दिल से दिल से जुड़ी कई बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है।
*लौकी में पोषक तत्व:*
लौकी पोषक तत्वों से भरपूर है!
लौकी में कई तरह के प्रोटीन, विटामिन और लवण पाए जाते हैं।
इसमें विटामिन-ए (0.5%),
विटामिन-सी (7.0%),
विटामिन बी-5 (3.5%),
बी-6 (3.5%),
विटामिन-के,
विटामिन-ई,
कैल्शियम (3.0%),
मैग्नीशियम (3.0%),
पोटेशियम (4.0%),
जिंक (6.5%),
आयरन (2.5%),
मैग्रीशियम (3.0%) और
मैग्नीैज (4.0%),
फोस्फोरस (2.0%),
सोडियम (<1%),
सेलेनियम (<1%),
फैट (1%) जैसे आवश्योक पोषक तत्वऔ होते हैं!
ये पोषक तत्व शरीर की कई आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं और शरीर को बीमारियों से सुरक्षित भी रखते हैं।
*घर में कहाँ लगायें लौकी:*
अगर आप घर पर सब्जियां लगाने के शौकीन हैं तो अपने बगीचे में लौकी जरूर लगाइए।
अगर आपके घर में पर्याप्त जगह किचन गार्डन के लिए है तब कोई समस्या नहीं है परंतु जगह नहीं है तो आप गमले या कंटेनर में लगा सकते हैं।
जयपुर में हमारे घर पर सब्जी लगाने के लिए जगह नहीं थी परंतु एक नवाचार किया।
लान के किनारे फूल वाली क्यारी में थोड़ी सी जगह निकालकर हमने लौकी लगाई थी!
इनके लिए रस्सी और छोटी लकड़ियों से एक मंच तैयार किया जिसके ऊपर यह फैल सके।
इस तरह से हमें पौधों के लिए दो स्तर मिल गए।
लौकी की मचान के नीचे क्यारी में भिंडी लगाई थी।
मल्टीलेयर बागवानी करके जगह निकालनी पड़ी।
लौकी मचान के ऊपर तेजी से बढ़ी।
पहले तीन फूट ऊँचा मचान बनाया गया था परंतु इसकी वृद्धि को देखते हुये एक और मचान 6 फीट ऊँचाई पर बनाया गया।
इस समय लौकी और भिंडी दोनों तेजी से बढ़ रही हैं और फल दे रही हैं।
मेरे वरांडा तथा गैरेज के बीच की खाली जगह को कवर कर दिया।
लौकी ने हरी छत बनाली।
हमारी लौकी लगभग 2 फीट लंबी हो रही है और वजन 2 किलो!
अब तक हम एक ही बेल से लोई 30 लौकी निकाल चुके हैं।
इस तरह से उत्पादित ऑर्गेनिक लौकी हम कई पड़ौसियों और रिसतेदारों को भी दे चुके हैं।
मेरी दोहितियां आशी और निशी तथा पुत्री सुनीता जब भी घर आती हैं वे खुद सबसे पहले मचान पर लटकी हुई लौकी को पसंद करते हैं और जो उन्होंने पसंद की वह लौकी तोड़कर उसकी सब्जी बनाई जाती है।
शुद्ध ऑर्गेनिक लौकी में किसी तरह का कोई पेस्टिसाइड प्रयोग नहीं किया गया है!
इसका स्वाद बड़ा लाजवाब होता है।
मेरी पत्नी श्रीमती गोमती बुरड़क किचन के सामने लगी लौकी तोड़कर सब्जी बनाती हैं।
3-4 दिन में एक लौकी तोड़ कर सब्जी बनाती हैं।
यदि एक साथ ज्यादा लौकी निकल जाती हैं तो लौकी का हलुवा बना लेते हैं जो कुछ दिन तक आराम से प्रयोग किया जा सकता है।
*लौकी लगाने की विधि:*
लौकी के पौधे को जमीन, गमला या ड्रम में बड़ी आसानी से उगाया जा सकता है। घर पर लौकी लगाने के लिए आपके पास अगर एक बड़ा कंटेनर है तो बहुत अच्छी बात है।
लौकी के लिए मिट्टी तैयार करते समय 50% साधारण जमीन की मिट्टी और 30% गोबर खाद या कंपोस्ट या वर्मी कंपोस्ट भी चलेगी और 20% रेत इन तीनों को मिलाकर मिश्रण तैयार करें।
यदि भेड़-बकरी की मींगनी की खाद मिल जाये तो यह सबसे ज्यादा उपयोगी रहेगी।
लौकी को बलुई दोमट मिट्टी पसंद आती है।
मिट्टी में खाद की मात्रा सीमित रखें ज्यादा होने पर पौधा जल जाएगा।
गमले के तली में पानी निकालने के लिए छेद होना बहुत जरूरी है वरना ज्यादा पानी होने पर पौधा सड़कर मर सकता है।
गमले में नीचे छेद पर कुछ कंकड़ डालदें तो अतिरिक्त पानी गमले में से नीचे आसानी से निकल सकता है।
गमले में लौकी उगाते समय संकर बीज का ही प्रयोग करें क्योंकि संकर बीज से लौकी में अच्छे फल आते हैं।
अगर आप जमीन पर लोकी लगा रहे हैं तो देसी किस्म की लौकी भी लगा सकते हैं।
लौकी का बीज पानी के प्रति संवेदनशील होता है यानी सड़ता बहुत जल्दी है इसलिए घर पर गमले में बीज लगाने के बाद गमले में जरूरत से ज्यादा पानी नहीं दें।
सर्दियों को छोड़कर सभी मौसम में लौकी उगाई जा सकती है। 25 डिग्री से 40 डिग्री तक का तापमान लौकी के लिए सर्वोत्तम होता है।
*फरवरी-मार्च से सितंबर तक लौकी लगाई जा सकती है।*
घर में लौकी लगाते समय सबसे पहले मिट्टी तैयार करने के बाद गमले या कंटेनर में मिट्टी भर लें।
उसके बाद लौकी का बीज मिट्टी में लगा दें।
आधे इंच से अधिक गहराई में बीज न लगाएं।
समय-समय पर गमले में पानी देते रहें।
मिट्टी में नमी बनाए रखने की कोशिश कीजिए जिससे बीज आसानी से अंकुरित हो सके।
4 से 7 दिनों में लौकी का बीज अंकुरित हो जाता है।
लौकी के लिए खाद के रूप में आप ऑर्गेनिक खाद का ही प्रयोग करें जैसे गोबर खाद या केंचुआ खाद।
अगर भेड-बकरी की मींगनी मिल सकें तो बहुत अच्छा है क्योंकि ये लंबे समय तक काम आती रहती हैं।
घर पर लगाई गई लोकी में हर 15 से 20 दिन बाद 50-60 ग्राम गोबर खाद देते रहें।
लौकी में 15 दिन में एक बार गमले की मिट्टी की हल्की गुड़ाई करते रहें।
लौकी की बेल को रस्सियों और लकड़ियों की सहायता से मचान बनाकर चढ़ा दें जिसे ज्यादा से ज्यादा लौकी आपको मिल सके।
*लौकी की देखरेख:*
लौकी पर पत्ते खाने वाले कीड़े और फल छेदक मक्खी का प्रकोप होता है। लौकी पर फूल आने के समय फल छेदक मक्खी अपने अंडों को फूलों में छोड़ देती है।
वही अंडे लौकी के छोटे-छोटे फल बनते समय फलों को सड़ा कर गिरा देते हैं। इसकी रोकथाम के लिए लौकी के पौधों पर नीम की पत्ती और लकड़ियों को जलाकर बनाई गई राख को सुबह-शाम लौकी के पौधे पर पानी का छिड़काव कर नीम की पत्तियों से बनी इस राख का छिड़काव कर दें। पतियों को खाने वाले सभी कीड़े मर जाएंगे।
नीम की पत्तियां और लहसुन को पीसकर भी कीटनाशक तैयार कर सकते हैं जो लौकी के फूल आते समय छिड़काव करने से फल सड़कर नहीं मरेंगे।
*लौकी की साइड ब्रांच:*
लौकी की बेल की नाल को जब बढ़ रहा हो तो आगे से काट देना चाहिए जिससे साइड की ब्रांच चल सकें।
साइड की ब्रांच चलती हैं तो उनको भी जब 6 से 8 प्रतियां आ जाएं तब आगे से काट देना चाहिए।
इससे साइड में सूट चलेंगे और जो साइड में सूट चलेंगी उनसे सफ़ेद रंग के मेल और फीमेल फूल आने लगेंगे।
फिमेल फूल में नीचे लौकी लगी रहती है।
मेल फूल यदि ज्यादा हो जवान तो उनमें से कुछ को हटा देना चाहिए।
जैसे ही लौकी का फल बढ़ने लगे उसके आगे की शाखा में एक पति छोड़कर उसको काट देना चाहिए।
यह प्रक्रिया प्रक्रिया पूरे सीजन में करनी चाहिए जिससे साइड के सूट ज्यादा आएंगे और लौकी की बेल बहुत ज्यादा दूर तक नहीं चलेगी।
लौकी को सब्जी के लिए तोड़ने का सबसे अच्छा समय वह है जब इस लौकी फल पर हल्के बाल हों और नाखून उसमें गड़ता हो या नाखून से छिलका उतरता हो।
पकने पर लौकी फल की सतह चिकनी और कड़ी हो जाती है।
वैसे बढ्न शुरू होने के 8 से 10 दिन में लौकी तैयार हो जाती है।
*कृत्रिम पोलिनेशन :*
लौकी में एक समस्या आती है कि कई बार इसमें कीट-पतंगों द्वारा पोलिनेशन नहीं होने से लौकी बढ़ती नहीं हैं इस समस्या का निदान कृत्रिम पोलिनेशन से संभव हो जाता है।
लौकी की बेलों में दो तरह के फूल होते हैं मेल और फ़ीमेल।
फिमेल फूल में फूल के नीचे फल दिखेगा। यदि पोलिनेशन यानि मेल फूल के प्रागण फिमेल फूल में नहीं गिरते हैं तो फल बढ़ेगा नहीं और गल कर गिर जावेगा।
लोग कहते हैं कि हमारी बेल के फूल तो बहुत आते हैं लेकिन गल जाते है।
मेल फूल में फल नहीं आयेगा इसलिए वह तो बिना फल के ही ख़त्म होना है। सामान्यतः बेल के एक नाल पर मेल और दूसरे पर फिमेल फूल आते हैं इसलिए ध्यान रखेंकि मेल फिमेल नाल साथ-साथ लिपटते हुए चलें।
मेल-फिमेल फूल पास-पास होंगे तो पोलिनेशन की संभावना बढ़ेगी। दूसरे आप चिमटी से मेल फूल के प्रागकण तोड़ कर फिमेल फूल में भी डाल सकते हैं। पोलीनेशन करने के लिए चिमटी की बजाय रुई का फोहा भी काम मे ले सकते हैं।
लौकी के बेल पर मेल फूल काफी संख्या में आते हैं इसलिए अगर आपके पास और कुछ भी नहीं हो तो दूर के एक मेल फूल को तोड़ लो और उसके पेटल्स हटा दो और इसके पराग कणों को फीमेल फ्लावर के अंदर टच कर दो बस पोलिनेशन हो गया।
*लौकी के व्यंजन:*
*लौकी की सब्जी :*
लौकी की सब्जी तो सभी बनाते हैं।
यह स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होती है।
यह रोटी के साथ खा सकते हैं या पराठे के साथ भी खा सकते हैं।
चावल-दाल के साथ भी यह सब्जी खा सकते हैं।
*लौकी के कोफ्ते :*
लौकी के कोफ्ते भी बहुत पॉपुलर हैं और स्वादिष्ट होते हैं, जायकेदार होते हैं। यह किसी भी उत्सव में चार चांद लगा देते हैं।
*लौकी का हलवा :*
लौकी का हलवा बहुत आसानी से तैयार किया जा सकता है।
लौकी को किसकर गाजर के हलुवे की तरह बनाया जाता है।
ज्यादातर दूध और खोए के साथ इस का हलवा तैयार किया जाता है जो ज्यादा स्वादिष्ट होता है।
परंतु आप बिना खोए के दूध के साथ भी लोकी का हलवा बना सकते हैं।
इसमें आप बादाम, इलायची, काजू, केसर आदि भी मिला सकते हैं।
*लौकी का रायता :*
लौकी का रायता बनाने में बहुत आसान है और खाने में स्वादिष्ट होता है। लौकी के रायते को आप किसी भी प्रकार के खाने के साथ सर्व कर सकते हैं। लेकिन पराठे और पूरी के साथ ज्यादा आनंद देता है।
*लौकी की खीर :*
लौकी की खीर बहुत पारंपरिक मिठाई है। इस स्वादिष्ट मिठाई को भगवान कृष्ण के जन्मदिन पर बनाया जाता है। यह फलाहारी अथवा व्रत करने वाले लोग भी खा सकते हैं।
*लौकी का थेपला :*
यह गुजराती डिश है जो रोटी या पराठे जैसा होता है। लौकी को बारीक पीसकर मसाले के साथ छोंक लें। इसको आटे के साथ गोंद कर पराठे बनालें। अगर आपके यहाँ लौकी की सब्जी बच गई हो तो आटे के साथ मिलाकर रोटी या परांठा बनालें। यह बहुत स्वादिष्ट होता है।
*लौकी के चीले :*
लौकी के चीले प्रोटीन और विटामिन का बहुत अच्छा संगम है। खाने में बहुत स्वादिष्ट लगते हैं और ब्रंच के रूप में यह आदर्श हैं। चीले बनाने के लिए आप मूंग दाल या चना दाल भी साथ में प्रयोग कर सकते हैं।
*लौकी-चने की दाल :*
लौकी चने की दाल न केवल स्वादिष्ट होती है बल्कि बहुत ही फायदेमंद भी है। इसमें हमें प्रोटीन काफी मात्रा में मिल जाता है। यदि आप चना नहीं खाते हैं तो मूंग-मोठ या अन्य दालों का प्रयोग भी कर सकते हैं। हम लौकी की सब्जी में अंकुरित मोठ और मूंग मिलाकर खाते हैं जो बहुत स्वादिष्ट होती है।
*लौकी का सांभर :*
सांभर दक्षिण भारत की एक डिश है जो अरहर दाल से बनती है।
इसमें दाल के साथ सब्जियां भी डाली जाती हैं।
इसलिए सांभर में लौकी डालते हैं तो सांभर का आनंद और भी अच्छा हो जाता है।
*लौकी का जूस :*
लौकी का जूस आजकल बहुत पॉपुलर हो रहा है। सुबह-सुबह आपको वाकिंग के समय बगीचे के पास लौकी का जूस पिलाने वाला मिल जाएगा।
*लौकी के अन्य उपयोग:*
लौकी पूरी तरह पकने पर इसका फल भूरा-खाकी रंग का हो जाता है।
इसको सुखाकर भीतरी गूदा निकाल देते हैं।
इसका प्रयोग बर्तन बनाने व सितार जैसे वाद्यों के निर्माण में प्राचीन काल से होता रहा है।
जब प्लास्टिक का प्रचलन नहीं था इसके बर्तनों में किसान बीज आदि रखते थे।
आदिवासी समुदायों में इसके बर्तनों में चावल का लांदा, शराब, ताड़ी, सलफ़ी आदि रखने का काम लेते थे।