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मोदी की गारंटी का मुकाबला कर सकता है साइकिल की वारंटी वाला प्रत्याशी
*मोदी की गारंटी का मुकाबला कर सकता है साइकिल की वारंटी वाला प्रत्याशी*
*मछलीशहर लोकसभा का मुकाबला होगा दिलचस्प*
करुणाकरण द्विवेदी
दैनिक वैभव उजाला
*जौनपुर।* लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। सियासी दल अपने हिसाब से राजनीति की बिसात बिछाने में लगे हुए हैं। 10 साल तक देश की सत्ता में मजबूती से शासन करने वाली भारतीय जनता पार्टी देश के सभी प्रदेशों में टिकट बांटने में जितने गंभीरता नहीं दिखाई उससे अधिक गंभीर उत्तर प्रदेश और बिहार में है। आखिर रहे भी क्यों ना? दिल्ली की सत्ता का रास्ता बिहार और उत्तर प्रदेश से ही होकर गुजरता है। टिकट बंटवारा को लेकर एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों दलों के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में आक्रोश दिख रहा है। यह स्वाभाविक भी है । कोई भी दल सभी को संतुष्ट नहीं कर सकते और यह भी सही है की टिकट बांटने वाले दल भी जरूरी नहीं है की सही प्रत्याशी को टिकट दें। पिछले 10 सालों से चुनाव संख्याबल का खेल बन गया है। इस संख्या को जुटाने के लिए सभी दल अपने अपने ढंग से साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपना रहे हैं। प्रदेश में राम लहर और मोदी की गारंटी के बीच सपा को भी साइकिल की सीट पर मजबूत, युवा प्रत्याशी के साथ-साथ वारंटी वाला प्रत्याशी उतरना होगा तभी वह दिल्ली की सवारी कर सकता है।
हम बात कर रहे हैं जौनपुर जिले के मछली शहर सुरक्षित सीट की। इस सुरक्षित सीट पर अनुसूचित जाति के सोनकर और सरोज के बीच टिकट का बंटवारा माना जाता है। इस लोकसभा में यही दो जातियां चुनाव लड़ने में शिक्षा और धनबल के साथ खड़ी रहती है। अगर हम बात करें सत्ता दल भाजपा की तो यहां से वर्तमान सांसद बीपी सरोज है। अभी तक इनका टिकट रोके रहने के दो कारण हो सकते हैं। पहले जिला स्तर की इकाई उन्हें दोबारा रिपीट नहीं होने देना चाहती दूसरा यह कि भाजपा यह देखना चाह रही कि सपा किस जाति के प्रत्याशी को उतारती है। भाजपा की कतार में बीपी सरोज के अलावा विधायक टीराम, विद्यासागर सोनकर, डॉ विजय सोनकर शास्त्री, जगदीश सोनकर, अपराजिता सोनकर, गुलाब सरोज के समर्थक अपने-अपने तरह से पार्टी हाईकमान तक बात पहुंचा रहे हैं। दूसरी ओर प्रदेश में मजबूती के साथ दावेदारी पेश करने वाली समाजवादी पार्टी की गणित यहां समझ से परे हैं। समाजवादी पार्टी की पहली सूची में ही मछली शहर विधायक डॉक्टर रागिनी सोनकर का नाम था । वह मनोयोग से लगातार क्षेत्र में जनता के बीच थी। मगर पहली सूची से छठवीं सूची जारी हो गई।
हर बार उन्हीं के नाम की चर्चा सोशल मीडिया पर रहती थी, लेकिन सपा मुखिया ने उनके नाम की घोषणा नहीं की। डॉ रागिनी सोनकर सपा मुखिया और सांसद डिंपल यादव की करीबी मानी जाती है। इसका मुख्य कारण उनका विधानसभा में अच्छे और गंभीर ढंग से सवालों की बौछार कर सत्ता दल के छक्के छुड़ाना है। डॉ रागिनी सोनकर सिर्फ मछली शहर विधानसभा की नहीं बल्कि पूरे जौनपुर जिले से लेकर प्रदेश स्तर के मामले को उठाकर लगातार सरकार को सदन में घेरती है। सत्र जितने भी दिन चलता है लोग उनके सवालों का इंतजार करते रहते हैं। कई बार तो सत्ता दल में भी उनके सवालों पर प्रशंसा की। इस कारण वह सपा मुखिया और सांसद डिंपल यादव की चहेती बन गई। हालांकि उनका टिकट अगर पहले घोषित हो जाता है तब भारतीय जनता पार्टी का कोई भी प्रत्याशी होता उनके सामने टिकने में कतराता। स्थानीय जनता का मानना है कि अभी तक विधानसभा में इतना अधिक समस्याओं को उठाने वाला जिले का कोई भी विधायक नहीं था। साथ ही उनका घर -घर जाकर प्रचार करने का अंदाज भी लोगों को भावुक कर देता है और लोगों को अपनापन महसूस होने लगता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि सपा की टक्कर भाजपा से है और डॉक्टर रागिनी सोनकर किसी भी स्थिति से निपटने के लिए आत्मविश्वास के साथ खड़ी हैं। अगर उन्हें टिकट मिला तो वह लोकसभा में सपा को मिलने वाली सीट में एक और सीट का इजाफा करेंगी। पेशे से डॉक्टर रागिनी सोनकर के पिता कैलाश सोनकर अजगरा से विधायक रह चुके हैं। वह मूलतः वाराणसी की रहने वाली है उनके पिता का प्रभाव वाराणसी से सटी पिंडरा विधानसभा में भी अच्छा खासा है। समाजवादी पार्टी के दूसरे प्रत्याशी के साथ एक नेगेटिव पहलू यह है कि पीडीए का नारा होने के कारण उन्हें सवर्ण वोट मिलने से रहा। मगर रागिनी सोनकर की लोकप्रियता और संबंध पीडीए के साथ सवर्णों में भी है। इसका लाभ समाजवादी पार्टी को मिल सकता है। सपा में रागिनी सोनकर के अतिरिक्त केराकत विधायक तूफानी सरोज, उनकी बेटी प्रिया सरोज, दीपचंद राम, कृपा शंकर सरोज और संजय सरोज है। पिछली बार बसपा के साथ सपा का गठबंधन होने के चलते भाजपा प्रत्याशी मात्र 181 वोट से विजयी घोषित हुआ था। इस बार बसपा डॉक्टर लाल बहादुर सिद्धार्थ को ही अपना प्रत्याशी बन सकती है।
अगर दो-तीन दिन के अंदर टिकट की घोषणा नहीं हुई तो यहां भी रामपुर और मुरादाबाद जैसी घटनाएं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समाजवादी पार्टी में देखने को मिलेगी। देर से टिकट जारी होने पर प्रत्याशी चुनाव में खर्च करने पर भी कतराने लगेंगे। सपा के कुछ प्रत्याशियों का मानना है की टिकट मिला तो केवल औपचारिकता ही होगी। भाजपा सत्ता दल है उसे कोई दिक्कत नहीं है हम लोग क्यों पैसा खर्च करें इतना? कम समय में ज्यादा मेहनत करना बुद्धिमानी नहीं है।