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ट्रक और बस ड्राइवरों की हड़ताल खत्म: हिट एंड रन केस में 3 दिन में ही बैकफुट पर क्यों आई सरकार?
देश में 80 लाख से ज्यादा ट्रक ड्राइवर हैं. ये लोग हर दिन लोगों की जरूरत का सामान एक शहर से दूसरे शहर तक पहुंचाते हैं. ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल से देश में पेट्रोल-डीजल की कमी तक हो गई.
देशभर में ट्रक और बस ड्राइवरों की हड़ताल का व्यापक असर देखने को मिला. दिल्ली, यूपी, बिहार, गुजरात समेत तमाम राज्यों में ट्रक और बसों के पहिए थम गए, पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम पूरी तरह से ठप हो गया था. हजारों यात्री अपने गंतव्य पर जाने के लिए परेशान होते रहे, कोई भी बस ड्राइवर बस चलाने को तैयार नहीं था.
ट्रक और बस ड्राइवरों की हड़ताल फिलहाल अब खत्म हो गई है. अगर ये हड़ताल नहीं रोकी जाती तो आम जनता की जेब पर इसका भारी असर भी पड़ सकता था. ट्रक ड्राइवर की हड़ताल की वजह से सब्जियां महंगी होने लगी थी. दूध, दवाइयां और रसोई गैस की कमी हो सकती थी. उधर पेट्रोल पंपों पर पहले ही लंबी-लंबी कतारें लगने लगी थी. कुछ शहरों के पेट्रोल पंप पर तो तेल खत्म भी हो गया था.
पहले समझिए आखिर ट्रक ड्राइवरों ने क्यों की हड़ताल
संसद में पिछले हफ्ते तीन आपराधिक न्याय विधेयक पारित किए गए. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद तीनों विधयक अब कानून बन चुके हैं. हालांकि ये कानून अभी लागू नहीं हुए हैं. देशभर में ट्रक और बस ड्राइवर भारतीय न्याय संहिता के हिट एंड रन कानून के प्रावधान में किए बदलाव का विरोध कर रहे हैं.
कानून के तहत अगर लापरवाही या तेज स्पीड से गाड़ी चलाने के कारण दुर्घटना में किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है और आरोपी ड्राइवर पुलिस को सूचित किए बिना ही मौके पर फरार हो जाता है तो उसे 10 साल की जेल की सजा काटनी पड़ सकती है या 7 लाख रुपये का जुर्माना देना पड़ सकता है. अगर वह भागता नहीं है तो भी उसे पांच साल की सजा काटनी पड़ सकती है. सबसे खास बात ये है कि दोनों ही मामले गैर-जमानती हैं, पुलिस थाने से जमानत नहीं मिलेगी.
इससे पहले कानून काफी नरम था. पुराने हिट एंड रन कानून के मुताबिक, लापरवाही से गाड़ी चलाने के कारण किसी व्यक्ति की मौत हो जाने पर अधिकतम दो साल की सजा का प्रावधान है. यही नहीं, आरोपी ड्राइवर को तुरंत थाने से जमानत भी मिल जाती है.
नए कानून को लेकर मंगलवार (2 जनवरी) को अखिल भारतीय परिवहन कांग्रेस (AIMTC) और गृह मंत्रालय के बीच लंबी बातचीत हुई. आखिरकार सरकार ने उन्हें आश्वासन दिया कि कानून अभी लागू नहीं हुआ है. नए लागू करने से पहले ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट से विचार विमर्श किया जाएगा. इस आश्वासन के बाद हड़ताल वापस ले ली गई.
हड़ताल करने वाले ड्राइवरों की मांग
देशभर के ड्राइवर कानून में नए प्रावधान के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. उन्होंने इसे काला कानून बताया. ट्रक और बस ड्राइवरों का कहना था कि जब तक इन कानूनों को वापस नहीं लिया जाएगा उनकी हड़ताल जारी रहेगी. प्रदर्शनकारी ट्रक ड्राइवरों का कहना है कि वह जानबूझकर किसी हादसों को न्योता नहीं देते है. ज्यादातर हादसे छोटी गाड़ी वालों की गलती से ही होते हैं.
उनका तर्क है कि अनजाने में उनसे सड़क पर कोई दुर्घटना होने पर भीड़ इकट्टा हो जाती है और भीड़ बड़े वाहन चालक की गलती मानकर उनपर टूट पड़ती है. कुछ मामलों में बड़े वाहन चालकों की मॉब लिंचिंग तक कर दी गई है. उनका कहना है कि ऐसे में अगर वो दुर्घटना के बाद रुकते हैं तो भीड़ उन्हें मार डालेगी और अगर नहीं भी रुकते हैं तो सरकार मार डालेगी. दोनों ही मामलों में उनके परिवार पर संकट है.
दूसरा अहम तर्क ये है कि वह महीने में 10-15 हजार रुपये कमाते हैं ऐसे में सात लाख रुपये का जुर्माना कहां से देंगे. इन तर्कों के आधार पर प्रदर्शनकारियों ने सरकार से नए कानूनों पर एक बार फिर सोच विचार करने की गुजारिश की है.
मांग और विवाद के बीच अर्थव्यवस्था पर खतरा
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 80 लाख से ज्यादा ट्रक ड्राइवर हैं. ये लोग हर दिन लोगों की जरूरत का सामान एक शहर से दूसरे शहर तक पहुंचाते हैं. हर साल 100 अरब किमी से ज्यादा की दूरी तय करते हैं. अगर ट्रक चालकों की हड़ताल कुछ दिनों तक जारी रहती तो देश की अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ सकता था. आम जनता तक रोजाना जरूरतमंद की चीजें पहुंचाने में ट्रक ड्राइवरों का अहम योगदान होता है. यहां पढ़िए हड़ताल के कारण देश में क्या-क्या असर होता.
ट्रक और दूसरी मालवाहक गाड़ियों के ड्राइवर के हड़ताल पर रहने से फल और सब्जियों की आपूर्ति ठप हो सकती थी. ताजा फल और सब्जियां मंडियों में नहीं पहुंच पाते, ऐसे में मांग बढ़ेती और फल-सब्जी विक्रेताओं को मजबूरीवश दाम बढ़ाने पड़ रहे थे. ये दाम दोगुनी भी सकते थे. इसका सीधा असर आम जनता की जेब पर पड़ेगा. रेस्टोरेंट में खाना-पीना महंगा हो सकता था. ऐसे ही दवाओं की भी किल्लत हो सकती था.
देश में हर दिन 126 मिलियन लीटर दूध का प्रोडक्शन होता है. हड़ताल की वजह से दूध की सप्लाई नहीं हो पाएगी. इस वजह से दूध से बनने वाली तमाम खाने की चीजें जैसै- मिठाइयां, पनीर, दही, घी, खोया आदि महंगा हो सकता है. लोगों को ये चीजें खरीदने में मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है.
कंस्ट्रक्शन का काम ठप: हड़ताल से निर्माण कार्य पर भी असर पड़ेगा. ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल से निर्माण और उत्पादन क्षेत्र को नुकसान पहुंच सकता है. कंस्ट्रक्शन का सामान और कच्चे माल की आपूर्ति बाधित होने से निर्माण परियोजनाओं में देरी हो सकती है या रोकना भी पड़ सकता है. कंस्ट्रक्शन का काम रुकने से रोजगार में कमी आ सकती है और आर्थिक विकास में बाधा पड़ सकती है.
आयात और निर्यात: ट्रक और बसों की हड़ताल से देश के इंपोर्ट और एक्सपोर्ट में भी व्यवधान पैदा हो सकता है. इससे वैश्विक व्यापार में बाधा आ सकती है और देश की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. आंकड़ों की मानें तो वित्त वर्ष 2023 में भारत का आयात 16.5 फीसदी बढ़कर 714 बिलियन डॉलर हो गया था. जबकि वित्त वर्ष 2022 में ये 613 बिलियन डॉलर था. वहीं जबकि निर्यात 6 फीसदी बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 447 बिलियन डॉलर हो गया, जो वित्त वर्ष 2022 में 442 बिलियन डॉलर था.
पेट्रोल-डीजल और गैस की किल्लत: देश के तमाम शहरों में लोगों को पेट्रोल-डीजल और गैस की किल्लत होने लगी थी. यूपी, दिल्ली और मध्य प्रदेश के बड़े शहरों में तेल भरवाने के लिए लंबी-लंबी कतारें देखने को मिली. आधे से पौन घंटे तक खड़े होकर लोग पेट्रोल भरवाने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते रहे. हालांकि कुछ शहरों में पेट्रोल-डीजल एसोसिएशन ने आश्वासन दिया था कि पेट्रोल-डीजल की कमी नहीं होगी.
हड़ताल के दौरान ट्रक ड्राइवरों को खुद भी नुकसान झेलना पड़ सकता था. उन्हें आर्थिक हानि का सामना करना पड़ सकता था, क्योंकि उनकी आमदनी बंद हो जाएगी. ज्यादातर ट्रक ड्राइवर दैनिक पर कमाते हैं. ट्रक सेवाएं रुकने से स्थानीय व्यापारों को भी नुकसान हो सकता है.
हिट एंड रन केस में बैकफुट पर क्यों आई सरकार?
देश में कुछ ही महीनों में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव की तैयारियों में जुटी हैं. ऐसे में सरकार बिल्कुल नहीं चाहेगी कि किसी भी तरह से उसके खिलाफ समाज में निगेटिविटी फैलें.
देश और दुनिया में इस वक्त राम मंदिर की जोरो-शोरो से चर्चा है. 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम काफी अहम है. इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल होंगे. चुनाव को देखते हुए सरकार किसी भी तरह से राम मंदिर पर चर्चा कम नहीं करना चाहेगी.
ट्रक और बस ड्राइवरों की हड़ताल ने देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया. हड़ताल के कारण देशभर में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बाधित होने लगी थी और कीमत भी बढ़ने लगी थी.
हड़ताल ने सरकार की छवि को भी खराब किया. सरकार को आम लोगों और बड़े कारोबारियों से भी दबाव का सामना करना पड़ा.
सरकार को यह महसूस हुआ कि ट्रक ड्राइवरों की मांगें जायज हैं. ट्रक ड्राइवरों का कहना है कि नया कानून अत्यधिक कठोर है और उनके लिए अनुचित है.
हड़ताल के जरिए सरकार पर दबाव?
ट्रक और बस के ड्राइवर देशव्यापी हड़ताल के जरिए केंद्र और राज्य सरकार पर नया कानून वापस लेने का दबाव बनाने की कोशिश की. हड़ताल की वजह से सबसे ज्यादा परेशानी आम जनता को ही हुई. भीषण सर्दी में लोग स्थानीय बस स्टैंड से अपने गंतव्य तक आने-जाने में परेशान नजर आए. कई यात्री मजबूरी में अपने गंतव्य तक पैदल ही चलकर जाते दिखे. हड़ताल के चलते कुछ यात्रियों में सरकार के खिलाफ आक्रोश नजर आया.