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- ***कोरोना में अनुत्तरित कुछ यक्ष प्रश्न***
***कोरोना में अनुत्तरित कुछ यक्ष प्रश्न***
***कोरोना में अनुत्तरित कुछ यक्ष प्रश्न***
संतोष पांडेय ,स्वदेशी चेतना मंच
मुंशी प्रेम चंद जी का एक कथन है “दुनियाँ में बिपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला विद्यालय आज तक खुला ही नही” l बुरा समय ईश्वर द्वारा भेजा गया देवदूत है जो हमे स्वप्न की नींद से जगाता है । समय बलवान होता है, मनुष्य नही ।कल जो अजेय से लगते थे आज जमींदोज हो चुके है । काल के गोद में कितने शाहजहां मौन सोये है ;पर जमाना तो उनको ही याद रख सका ,जिन्होंने कराहती मानवता की सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य समझा । आज ये बाते इसलिए याद आ रही है क्यो कि कोरोना महामारी के इस अकाल में लोग छोटी – छोटी बातों में लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे है । जिस महामारी के दौर में लोगो को एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए ,उस दौर में हम इतने निर्दयी हो गये है जिसमे हमे किसी की भूख और संवेदना से कोई लेना देना नही है ।ये कोरोना काल के ऐसे अनुभव है जिसको कोई याद नही रखना चाहेगा।
यहाँ पर कुछ दिन पहले एक घटना का जिक्र करता हूँ…. भदोही के सुरियावां के किसी गाँव मे थोड़े से विवाद में एक वहसी द्वारा फरसे से मार कर एक व्यक्ति की हत्या का वीडियो आम हुआ । उस वीडियो को देखकर एक प्रश्न मन मे उठता है कि क्या हमारी नजर में किसी के जीवन का कोई मोल नही है ? यदि एक मनुष्य की कोई हत्या करता है तो ,उस हैवान को ये समझना चाहिए कि उसने सम्पूर्ण परिवार की हत्या कर दी, उसने उस परिवार की खुशियों की हत्या कर दी। कैसा दुर्भाग्य है कि जिस देश ने दुनियाँ के देशों को “बसुधैव कुटुम्बकं ” का पाठ पढ़ाया , जिस देश के लोगो मे सहअस्तित्व का भाव था; उसी के अपनो ने भरी -पूरी बगिया में आग लगा दी ।
ये कैसा रिवाज है ,जिसमे हम अपने माँ-बाप की इज्जत तो लोगो से करवाना चाहते है लेकिन दूसरे के माँ-बाप; हमारी नजर में तुच्छ से है । हमारा अपना बेटा या बेटी राजकुमार ,राजकुमारी है और दूसरे का “बुधुआ की लुगाई” । अरे ऐसा भी कही होता है कि हम सम्मान न दे और उसके एवज में सम्मान की आशा करे । हमें इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए जिस समाज का निर्माण हम कर रहे है उसी समाज मे हमको रहना होगा ।अच्छा हुआ तो, सब आगे बढ़ेंगे ,बुरा हुआ तो सब मारे जायेगे ।
कोरोना के इस नामुराद समय मे कुछ प्रश्नों के उत्तर आपको खुद से पाना होगा । जैसे .. जिस गाँव मे शहर वाले गंर्मी कि वजह से आते नही थे ; वही गाँव उनके प्राण बचाने की अंतिम जगह बनी ।
असुरक्षा की स्थिति में अपने जन्मभूमि की याद अनायास ही आती है । जो गाँव बिराने से लगने लगे थे ,उसमे आज जिधर देखो ,उधर नरमुंड ही दिखते है और लोग अपने साथ समस्यायों की बाढ़ भी साथ लाये है । समाज मे परिवार जैसी कोई संस्था रही नही । एकल परिवार सर्वत्र दिखाई देते है , भरा पूरा परिवार नदारद हो गये है। और उसी के साथ समाप्त हो गये पारिवारिक सामंजस्य ; जिसका परिणाम ये हुआ कि जमीन ,जायदाद के बटवारे में झगड़े फसाद आम हो गये । मानव स्वभाव जल के समान है जिस पात्र में रख दो उसी का स्वरूप ग्रहण कर लेता है । शहर के अपने तौर -तरीके है और गाँव का अपना संस्कार । गाँव से शहर गया आदमी एक अच्छा शहरी बन जाता है पर शहर का व्यक्ति जिसने समाज कभी देखा नही गाँव के ताने- बाने पर चोट पहुँचाता है अंततः अपनी बेरुखी और स्वार्थ की वजह से समस्या का कारण बनता है । यदि ऐसा नही होता तो गाँव के जिस घर मे पूरे वर्ष कोई एक दीया जलाने वाला रहता ,अचानक वही घर और पुस्तैनी जमीन युद्ध का मैदान बन जाती है ।
दूसरा प्रश्न ये है कि— ऐसे हतासा के समय मे हमारी महत्वाकांक्षाएं क्यो आसमानी हो चली है ।
मित्रों इस प्रश्न के जवाब में आधुनिक समस्याओं का निदान है । मेरे विचार में इसका उत्तर ये है कि हम गलत समय मे इच्छाओं का सैलाब पाल रखे है । जब परिस्थितियो में कोई परिवर्तन नही हो सकता तब हम जबदस्ती ऐसा करने की सोच रहे है ,परिणाम यह होगा कि हम अवसाद ग्रस्त हो रहे है । ऐसा तभी होता है जब हम दूसरो का अनुकरण करने लगते है बजाय इसके की हम उनका अनुसरण करें ।
ईश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति को अद्वितीय बनाया है । किसी के जीवन की परिभाषा किसी के जीवन से मेल नही खाती है अतः जब हर एक के जीवन का जैकपोट अपने समय पर ही खुलेगा तो चिंता कैसी !
मित्रो समय बुरा है ,पर ये तो आना ही था । जब मनुष्य अपने आप को प्रकृति के बराबर समझने लगता है तो कोरोना जैसी आपदाये आती ही है । जब धरती मैया के घर मे कुछ अभागे कलह मचाएंगे तो वह माँ तो क्रुद्ध होगी ही । लेकिन इसी के साथ ये भी याद रखना होगा कि “जीवन की हर दुर्घटना में कुछ नैतिक पहलू छिपे ही रहते है “। बिपदाये तो दैवीय संकेतक है जो हमे सचेत करती है कि हम इस ग्रह पर किरायेदार है मकान मालिक नही । अतः जो हमारा है ही नही उसके लिए ब्यर्थ मारामारी क्यों करे। हर रात की सुबह अवश्य होती है ,कोरोना भी देर सबेर चला ही जायेगा पर पीछे छोड़ जाएगा यादों का समुंदर जिसमे बहादुर और परोपकारी अपना अक्स पायेगा और कायर और अत्याचारी उस सैलाब में विलीन होंगे ।
खलील जिब्रान महोदय के शब्दों में ” वह गमगीन हृदय कितना भव्य है जो खुशी का तराना गाता है ” । सही परिस्थियों और अच्छे लोगो के साथ तो कोई भी चल सकता है ।असली अग्नि परीक्षा तो तब होती है जब हम बुरे लोगो के साथ पाते है और अच्छे तरीके से निर्वाह कर लेते है ।
प्रिय पाठक गण पुस्तके हमारी सच्ची सहयोगी है । ज्ञान अनंत है , हमे पढ़ने की आदत डालनी चाहिए । यकीन मानिए जीवन सदैव ताजा बना रहेगा ।
दोस्तो मैं समाज का एक छोटा चिंतक हु, मेरे लेखनी यदि आपके जीवन को प्रभावित करती हो तो आपसे निवेदन है मेरे विचारों को साझा करें जिससे मेरी सख्सियत जिंदा रहे ।
मित्रो “दुखियारी को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नही होते “। आने वाले कुछ महीने बड़े निष्ठुर हो सकते है । प्रेम और सहकार से ही हम इस दैवीय बिपत्ति से पार पाएंगे । निर्बल का ख्याल रखिये ,अपनी जबान को मधु की चाशनी से सराबोर करिये जिससे जलता हृदय और नाउम्मीद ज़िंदगी प्रफुल्लित हो सके ।
याद रखिये !
“”टूटी हुई किश्ती में सवार होकर मल्हार गाना हिम्मत नही हिमाकत है”””( मुशी प्रेमचंद जी )
( उन सभी को समर्पित जिनकी वजह से कोई मुस्कराता है )
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काल करे 7039403464
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